DC Motor In Hindi के इस आर्टिकल में DC मोटर क्या है ? कैसे काम करता है ? कितने प्रकार है ? कहा इस्तेमाल होता है ? और उसकी स्पीड कैसे कण्ट्रोल किया जाता है ? उसके बारेमे विस्तार से समझेंगे।
DC Motor In Hindi
What is DC Motor ?
मोटर एक इलेक्ट्रिकल पावर सप्लाई से गुमने वाला उपकरण है। AC मोटर AC सप्लाई देने से गुमती है, याने की इलेक्ट्रिकल एनर्जी को मैकेनिकल एनर्जी में कन्वर्ट करती है। ठीक उसी तरह DC मोटर को DC पावर सप्लाई से चलाया जाता है। और ये DC इलेक्ट्रिकल एनर्जी को मैकेनिकल एनर्जी में कन्वर्ट करता है।
मोटर की जब रचना होती है तभी त्यय होता है की, ये AC पे चलानी है या DC पे, मोटर की रचना के अनुसार उसे चलाने के लिए जो पावर सप्लाई का इस्तेमाल होता है वो DC(डायरेक्ट करंट) होता है। DC पावर सप्लाई से चलाया जाने की बजह से उसे DC Motor कहा जाता है।

DC Motor Working principal
दोस्तों DC Motor का वर्किंग सिद्धांत बहुत आसान है। हम इलेक्ट्रिकल से जुड़े हुए है तो इसे समझने में ज्यादा दिक्कत नहीं आएगी।
जब कोई करंट फ्लो करने वाला वाहक को किसी चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है। तब इसमें टॉर्क उत्पन्न होता है। ये टॉर्क उस वाहक को 90′ पे गुमाने की कोशिश करता है।
DC मोटर की फील्ड कोइल में जब सप्लाई दी जाती है तब, एयर गैप में मेग्नेटिक फील्ड का अस्तित्व बनता है।
DC Motor की फील्ड वाइंडिंग जिसको हम स्टेटर वाइंडिंग भी कहते है। इस फील्ड वाइंडिंग में पोल होते है, जिसे हम N और S पोल कहते है। जब हम फील्ड वाइंडिंग को पावर सप्लाई प्रदान करते है तब, उसमे चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है। ये मेग्नेटिक फ्लक्स अभी हवा में है।
फ्लेमिंग के लेफ्ट हैंड का नियम हमें मालूम है तो ये और भी आसान है।
फ्लेमिंग के बाये हाथ के नियम के अनुशार, इस मेग्नेटिक फ्लक्स के बीचमे से करंट फ्लो करने वाला वाहक पसार करेंगे तो उसमे टॉर्क जनरेट होगा। ये टॉर्क वाहक को 90’C पे गुमाने की कोशिश करेगा।
यहाँ करंट फ्लो करने वाला वाहक हमारे पास आर्मेचर है जिसे हम रोटर कहते है। इस इस आर्मेचर के वाइंडिंग में भी सप्लाई दिया जाता है इसीलिए, इसमें से करंट पसार होता है। और जनरेट होने वाला टॉर्क उस रोटर को 90′ पे गुमाने की कोशिश करेगा।
टॉर्क का बल आर्मेचर को घुमाता है। परिणाम हमें रोटर घूमता दीखता है। इसमें करंट का फ्लो तो परिवर्तित होता है पर वाहक पर बल की दिशा समान रहती है।
यहाँ इलेक्ट्रिकल फील्ड और मेग्नेटिक फील्ड Interact होती है, तब मैकेनिकल फोर्स जनरेट होता है। DC Motor इसी प्रिन्सिपाल पे काम करता है।
DC Motor के भाग
- Stator
- Armature- Rotor
- Armature Winding
- Field Winding
- Commutator
- स्टेटर – ये एक मोटर का स्थिर भाग है। जिसमे फील्ड वाइंडिंग की जाती है। जिसमे पावर सप्लाई देने से मेग्नेटिक फ्लक्स उत्पन्न होता है। कही स्टेटर में परमेनन्ट मेगनेट भी लगाया जाता है। जिसके N,S पोल में चुंबकीय उत्पन्न होता है।
- आर्मेचर -(रोटर) आर्मेचर DC Motor में घूमता भाग है। इसे रोटर भी कहा जाता है। ये शाफ़्ट, वाइंडिंग, कम्यूटेटर और कोर से बना हुआ मोटर का आतंरिक भाग है। आर्मेचर में वाइंडिंग होता है वो कम्यूटेटर और कार्बन ब्रूस के माध्यम से पावर सप्लाई से जोड़ा जाता है।
- फील्ड वाइंडिंग – मोटर के स्टेटर में कॉपर ते तार से वाइंडिंग की जाती है इसे फील्ड वाइंडिंग या स्टेटर वाइंडिंग कहते है। इसमें पोल होते है जिसमे चुंबकीय फ्लक्स उत्पन्न होता है।
- आर्मेचर वाइंडिंग – आर्मेचर में दो प्रकार के वाइंडिंग होते है। एक लैप वाउन्ड वाइंडिंग और दूसरा वेव वाउन्ड वाइंडिंग। वाइंडिंग की कोइल आर्मेचर स्लॉट में रखा जाता है जो कम्यूटेटर के साथ कनेक्ट रहता है।
- Commutator – कॉपर के बार से बनाया जाता है। बार के बीचमे इंसुलेटिंग मटेरियल से अलग रखा जाता है। कम्यूटेटर सेगमेंट से आर्मेचर वाइंडिंग से कनेक्ट होता है। दूसरी तरफ कार्बन ब्रश से पावर सप्लाई कनेक्ट होता है।
Types of DC Motor – DC Motor के प्रकार
DC मोटर के प्रकार फील्ड वाइंडिंग और आर्मेचर वाइंडिंग कनेक्शन के आधार पे होते है। हरेक प्रकार की मोटर की अपनी खासियत है। स्पेशल जगह पे त्यय की गयी मोटर का ही इस्तेमाल किया जाता है। हम DC Motor in Hindi के इस आर्टिकल में हरेक प्रकार की मोटर का विस्तार से वर्णन करेंगे।
1 – Permanent Magnet DC Motor- PMDC Motor
2 – Separately Excited DC Motor
3 – Self Excited DC Motor
3A – सीरीज मोटर – DC Series Motor
3B – शंट मोटर – DC Shunt Motor
3C – कॉम्पाऊण्ड मोटर – DC Compound Motor
1- Cumulative Compound Motor
2 – Differential Compound Motor-

1- Permanent Magnet DC Motor – PMDC
इसे PMDC मोटर भी कहा जाता है। हम इसके नाम से भी मोटर के प्रकार का अंदाजा लगा सकते है। परमेनन्ट मेगनेट याने जो अस्थायी नहीं पर स्थायी मेगनेट है। इस प्रकार की मोटर के स्टेटर में स्थायी मेगनेट फिट किया जाता है।
इसमें फील्ड वाइंडिंग की जरुरत भी नहीं होती है। स्थिर मेगनेट ही फील्ड चुंबकीय फ्लक्स उत्पन्न करता है।
आर्मेचर में कम्यूटेटर सेगमेंट होते है जिसमे वाइंडिंग होती है। और इसे कार्बन ब्रश के द्वारा पावर सप्लाई दिया जाता है।
2- Separately Excited DC Motor
DC Motor के इस प्रकार में फील्ड वाइंडिंग और आर्मेचर वाइंडिंग को अलग-अलग सप्लाई दिया जाता है इसीलिए, इसे Separately Excited मोटर कहते है।
इसमें आर्मेचर करंट फील्ड वाइंडिंग से होके पसार नहीं होता। दोनों वाइंडिंग का करंट फ्लो अलग-अलग है। क्युकी, फील्ड वाइंडिंग को अलग से पावर दिया जाता है।
3- Self Excited DC Motor
DC Motor में सबसे ज्यादा उपयोग होने वाली मोटर है। इस प्रकार के मोटर के फील्ड वाइंडिंग को एक्साइट करने के लिए बहार से कोई सप्लाई की जरुरत नहीं है। आर्मेचर वाइंडिंग को दिए जाने वाले सप्लाई से ही फील्ड वाइंडिंग एक्साइट किया जाता है।
इस प्रकार की मोटर में फील्ड वाइंडिंग और आर्मेचर वाइंडिंग के कनेक्शन के आधार पे अलग-अलग प्रकार होते है। जिसमे सीरीज मोटर,शंट मोटर,कंपाउंड मोटर है,जिसके बारेमे आगे विस्तार से समझेंगे।
3A- DC Series Motor
DC Series Motor में फील्ड वाइंडिंग आर्मेचर वाइंडिंग के सीरीज में होती है। फील्ड वाइंडिंग सीरीज में होने के कारण ही इसे सीरीज मोटर कहते है।
इस प्रकार की मोटर में फील्ड वाइंडिंग के तार मोटी रहती है और इसके टर्न्स कम होते है। तार की साइज मोटी और कम टर्न्स होने की बजह से उसका रेजिस्टेंस कम होता है।
Series Motor में दूसरे की तुलना में स्टार्टिंग टॉर्क बहुत अच्छा होता है। आर्मेचरे वाइंडिंग और फील्ड वाइंडिंग दोनों में करंट का फ्लो सामान होता है।
जब मोटर को बिना लोड स्टार्ट किया जाता है तो उसकी गति बहुत बढ़ जाती है। जैसे लोड बढ़ता है तो करंट बढ़ता है पर गति कम होती है। इसीलिए, जहा कांस्टेंट स्पीड की जरुरत हो वहा इसका इस्तेमाल नहीं होता।
इस प्रकार की मोटर को बिना लोड चालू नहीं किया जाता। क्युकी, नो लोड में इसकी स्पीड बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। और Centrifugal Force के कारण आर्मेचर वाइंडिंग डैमेज हो सकता है। और हमें नुकशान हो सकता है।
DC सीरीज मोटर का इस्तेमाल कहा होता है। Application
जहा ज्यादा स्टार्टिंग टॉर्क की जरुरत हो वहा DC सीरीज मोटर का इस्तेमाल होता है।
DC Series Motor का उपयोग ज्यादातर इंडस्ट्रीज में होता है। जैसे की फोर्कलिफ्ट, Hoist, Trolley कार DC फैन, ब्लोअर, कम्प्रेसर और क्रैन में होती है। इसके आलावा Train, Metro, Tram में भी इसका इस्तेमाल होता है।
3B- DC Shunt Motor
DC Shunt Motor की रचना भी बाकि मोटर की तरह ही होती है। पर इसमें मुख्य बदलाव फील्ड वाइंडिंग कनेक्शन का होता है। शंट मोटर में फील्ड वाइंडिंग आर्मेचर वाइंडिंग के पेरेलल में होता है।
शंट मोटर में फील्ड वाइंडिंग कॉपर पे पतले तार से किया जाता है। वाइंडिंग में नंबर ऑफ़ टर्न्स सीरीज मोटर के फील्ड वाइंडिंग की तुलना में ज्यादा होता है। इसीलिए, फील्ड वाइंडिंग का प्रतिरोध भी ज्यादा होता है।
DC Shunt Motor Circuit Diagram

Shunt Motor मोटर में गति का वेरिएशन बहुत कम होता है। फील्ड वाइंडिंग में करंट की वैल्यू भी लोड और नोलोड में लगभग एक समान ही रहती है। लोड बढ़ता है तब आर्मेचर वाइंडिंग में करंट बढ़ता है। पर स्पीड पे कोई ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता। हा,लोड पे और बिना लोड पे चलाएंगे तो निश्चित रूप से बिना लोड के समय में स्पीड ज्यादा होगी।
Shunt Motor Application
शंट मोटर में लोड के साथ स्पीड में बदलाव नहीं होता इसीलिए,जहा स्थिर गति की आवश्यकता होती है ऐसी जगह पे शंट मोटर का इस्तेमाल होता है।
- स्पिनिंग मिल मशीन, लेथ मशीन, ग्राइंडर मशीन waving मशीन जैसे मशीनो को कांस्टेंट स्पीड की जरुरत होती है। और ऐसे मशीनो में ही इसका इस्तेमाल होता है।
AC थ्री फेज मोटर के प्रकार एवम कार्य
सिंगल फेज मोटर के प्रकार एवम कार्य
3C- DC Compound Motor
DC Compound Motor, DC सीरीज और शंट मोटर का मिश्रण है। और ये एक सेल्फ exited मोटर है। जिसमे सीरीज और शंट दोनों प्रकार के फील्ड वाइंडिंग होते है। एक आर्मेचर की सीरीज में और एक आर्मेचर के पेरेलल में होता है।
जो वाइंडिंग आर्मेचर सीरीज में है, उसका तार मोटा होता है। वाइंडिंग के टर्न्स कम होते है। प्रतिरोध भी कम होता है। सीरीज वाइंडिंग में लोड के साथ करंट का मूल्य भी कम-ज्यादा होता है।
DC Compound Motor Circuit Diagram

जो वाइंडिंग आर्मेचर के पेरेलल में होता है, उसका तार पतला होता है। वाइंडिंग के टर्न्स ज्यादा होता है। और प्रतिरोध भी ज्यादा होता है। पेरेलल वाइंडिंग में लोड के साथ करंट में कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता,लगभग वैसा ही रहता है।
कम्पाउंड मोटर में फील्ड वाइंडिंग के आर्मेचर के साथ कनेशन के आधार पे दो प्रकार होता है।
1 – Cumulative Compound Motor
इस प्रकार की मोटर में लोड करंट एक ही दिशामे पसार होता है। कनेक्शन सीरीज में हो या पेरेलल में पर करंट का फ्लो एक ही दिशामे होता है। Cumulative Compound मोटर में लोड के साथ गति में बदलाव होता है। जैसे लोड बढ़ेगा स्पीड कम होगी और जैसे लोड कम होगा स्पीड बढ़ेगी।
इस प्रकार की मोटर का इस्तेमाल जहा अचानक लोड बढ़ जाता है ऐसी जगह पे होता है। ड्रिल मशीन, ग्राइंडर मशीन, हैमर मशीन, पंचिंग मशीन जैसे मशीन में होता है। जहा लोड अचानक बढ़ जाता है और कम भी हो जाता है।
2 – Differential Compound Motor
इस प्रकार की मोटर में सीरीज वाइंडिंग और आर्मेचरे वाइंडिंग एक दूसरे का विरोध करते है। इन मोटर में बिना लोड या कम लोड पे मेग्नेटिक फ्लक्स ज्यादा होता है। जैसे लोड बढ़ता है मेग्नेटिक फ्लक्स कम होता है। साथ में जैसे लोड बढ़ता है वैसे उसकी स्पीड भी बढ़ती है। ये इस प्रकार की मोटर की खासियत है।
DC मोटर की स्पीड कैसे कंट्रोल करें – DC Motor Speed Control
DC मोटर की स्पीड तीन तरीके से कण्ट्रोल कर सकते है।
1 – आर्मेचर सर्किट में रेजिस्टेंस की वैल्यू बदलकर स्पीड कंट्रोल कर सकते है।
2 – फील्ड के फ्लक्स को वैरी करके स्पीड बदल सकते है।
3 – आर्मेचर के टर्मिनल वोल्टेज को बदल के स्पीड कंट्रोल कर सकते है।
DC Motor In Hindi के इस आर्टिकल में, DC Motor के प्रकार,कार्यसिद्धांत,भाग उसका उपयोग और स्पीड कंट्रोल कैसे करते है उसकी पूरी नोध है। इसके आलावा भी आपको DC Motor से सम्बंधित कोई सवाल है तो कमेंट बॉक्स में लिख सकते हो।