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You are at:Home»HIndi»Mysterious facts in hindi | रहस्यमयी तथ्य
HIndi

Mysterious facts in hindi | रहस्यमयी तथ्य

jyoti guptaBy jyoti guptaNovember 5, 2023No Comments29 Mins Read2 Views
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Mysterious facts in hindi | रहस्यमयी तथ्य: दोस्तों आज हम कुछ ऐसे रहस्यों के बारे में बात करेंगे जो दुनिया के अनसुलझे रहस्य हैं यानी Unsolved mysteries फैक्ट्स ये करीब पचास से ज्यादा ऐसी रहस्यमयी बाते है जो आपको हैरान कर देगी तो चलिए पढ़ते हैं

रहस्य का अर्थ है “छिपा हुआ” या “कोई कुछ नहीं जानता”। हम दुनिया के कुछ स्थानों पर नज़र डालेंगे जो कई रहस्यों के लिए जिम्मेदार हैं, जैसे कि लोक कथाएँ, या यहाँ तक कि आश्चर्यजनक परिस्थितियाँ, विशेष रूप से हमारे देश भारत में, जहाँ कई रहस्य बहुत शुरुआत से जुड़े हैं

Table of Contents

  • Mysterious facts in hindi | रहस्यमय सच्ची घटनाएं
  • Mummy of Baby Alian.
  • The Island of Dead :Poveglia Island Italy.
    • पोवेग्लिया आयलंड (Poveglia Island Italy):-
    • पोवेग्लिया आयलंड का इतिहास (History of Poveglia Island):-
    • Plague Equipment (Poveglia Island):-
    • Poveglia- a Haunted Island:-
    • Poveglia Island Mental Hospital:-
  • 1975 The Eirth Quiak Haicneng
  • Voynich Manuscript.
  • Pendora Virus.
  • Dancing Plague.
  • The probability of an Alien
  • Yaangshi village in china.
  • The magic of Jo Girardelli.
  • Hoia Baciu
  • Mystery Of Rajrajeshwari Mandir.

Mysterious facts in hindi | रहस्यमय सच्ची घटनाएं

सामने आए कई रहस्य mysteries फैक्ट्स in hindi मनोरंजन और सामान्य ज्ञान की दावत साबित होंगे। जिसके जरिए आप अपनी प्यास को आश्चर्य से बुझा सकते हैं। एक और बात यह है कि रहस्यों के वर्णन के पीछे किसी भी सामाजिक समुदाय या किसी अन्य व्यक्तित्व को अपनाकर किसी को चोट पहुंचाने का प्रयास नहीं किया गया है।

यदि ये रहस्य केवल मनोरंजन और सामान्य ज्ञान के लिए आपके सामने प्रस्तुत किए गए हैं, तो मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि आप इसे उस दृष्टिकोण से देखें। तो रहस्यों के समुद्र में गोता लगाने के लिए तैयार हो जाओ।

दोस्तों, अभी तक विज्ञान और चिकित्सा ने चाहे कितनी ही तरक्की कर ली है, लेकिन अभी भी हमारी दुनिया बहुत से ऐसे रहस्यों से भरी हुई है जिन्हें अभी तक एक सुलझाना बाकी है। इनमे से कुछ छांट कर रहस्य हम आपके लिए लाए हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में।

Mummy of Baby Alian.

साल 2003 में चिली के अटाकामा रेगिस्तान में 6 इंच लंबा विचित्र कंकाल पाया गया। अनेक लोगों का मानना है कि यह छह इंच लंबा कंकाल किसी अन्य ग्रह से संबंधित है लेकिन स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के जांचकर्ता दावा करते हैं कि यह कंकाल हजारों साल पहले इंसानी dna से छेड़छाड़ कर बनाया गया एक अन्य जीव है।

हमारी दुनिया का इतिहास बड़ा ही दिलचस्प भी है और खतरनाक भी. इतिहास के कितने ऐसे राज़ हैं जिनके बारे में न तो हमें पता है और न ही हम उनकी सच्चाई जानते हैं, लेकिन किसी एक सुराग के मिलते ही हम अपने इतिहास की ही पड़ताल करने लगते हैं.

दुनिया भर के आर्कियोलॉजिस्ट हमेशा किसी न किसी ऐसे ही इतिहास की खोज में रहते हैं जो उन्हें मानव सभ्यता के बारे में बताए. ममी यानी मानव कंकाल जिन्हें सहेज कर रखा जाता है वो हमेशा ही आर्कियोलॉजिस्ट की जागरुकता का केंद्र रहते हैं.

2003 में चिली के रेगिस्तान में एक ऐसा अजीब ममी मिला था जो अभी तक रहस्य बना हुआ है. ये किसी 6 फुट के इंसान का नहीं बल्कि एक 6 इंच के बच्चे का ममी था. एटाकामा रेगिस्तान में मिले इस ममी का नाम एटा रखा गया था.

शुरुआती रिसर्च में इस ममी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिली. इसे इसके साइज के कारण एलियन ममी कहा गया. डीएनए की जांच के बाद पता चला कि इस बच्चे में जेनेटिक म्यूटेशन थे. बौनापन और स्कोलियोसिस (रीढ़ की हड्डी का एक तरफ झुकाव) उनमें से एक था.

2018 की रिसर्च कहती है की स्टडी एटा पर की गई सबसे हालिया स्टडी है और इसके पब्लिश होने से पहले ये उम्मीद की जा रही थी कि ये एटा के रहस्य को सुलझाएगी, लेकिन इसने गुत्थी को और उलझा दिया. एटा पर की गई रिसर्च की एक कड़ी (भट्टाचार्य 2018) हाल ही में सामने आई है.

ये रिसर्च कहती है कि एटा दरअसल एक मानव (लड़की) का कंकाल है जो कई जेनेटिक खामियों के चलते ऐसा हो गया था. इस कंकाल में ‘accelerated bone age.’(समय से पहले हड्डियों का बढ़ जाना) जैसी कमी भी पाई गई है. हालांकि, ये स्टडी सामने आते ही विवादों का हिस्सा बन गई.

लोग इस रिसर्च पर सवाल उठा रहे हैं. इंटरनेशनल रिसर्चरों के मुताबिक ये जिनोमिक (genomic) असल में सही नहीं माना जा सकता क्योंकि कंकाल असल में एक अविकसित बच्चे का नहीं बल्कि विकसित हो रहे बच्चे का हो सकता है जो 15 हफ्तों के आस-पास का हो सकता है.

मार्च 2018 की स्टडी जो journal Genome Research में पब्लिश की गई थी वो बताती है कि ये अविकसित बच्चे का है और बाकी रिसर्चर कहते हैं कि ये विकसित हो रहे बच्चे का कंकाल है. स्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी के लीड रिसर्चर गैरी नोलान ने भी हालिया स्टडी के पब्लिश होते ही इसको लेकर कुछ संशय जताया था.

चिली की सरकार और साइंटिस्ट कहते हैं कि इस कंकाल को गैरकानूनी तरीके से देश के बाहर ले जाया गया था और इसपर स्टडी कभी की ही नहीं जानी चाहिए थी. एक हालिया इनवेस्टिगेशन इस बारे में संशय जताती है कि स्केलेटल और जिनोमिक एनालिसिस पूरी तरह से सही नहीं है.

इस ममी को लेकर हमेशा से एक दूसरा पक्ष ये कहता रहा है कि ये इंसानी कंकाल है ही नहीं. इसके छोटे फीचर्स और हड्डियां जो कुछ-कुछ मानव कंकाल जैसे लगते भी हैं और नहीं भी बताते हैं कि ये असल में ये एलियन भी हो सकता है.

यूनिवर्सिटी ऑफ ओटेगो के बायोआर्कियोलॉजिस्ट असोसिएट प्रोफेसन सिएन हैलक्रो का कहना है कि ऐसा कोई साइंटिफिक प्रोसेस नहीं है जिससे एटा का जिनोमिक एनालिसिस सही तरीके से किया जा सके. क्योंकि ये कंकाल आम लग रहा है और जेनेटिक म्यूटेशन सिर्फ इत्तेफाक भी हो सकते हैं.

साथ ही कोई भी जेनेटिक म्यूटेशन ऐसा नहीं है जो कंकाल से मेल खाए वो भी इस कम उम्र में.इंटरनेशन टीम ने इस कंकाल में कई सारी समस्याएं बताईं जैसे इस कंकाल की उम्र का ठीक-ठीक पता नहीं लगाया जा सकता है. कंकाल में सिर्फ 10 पसलियां हैं जब्कि आम इंसानों में 12 होती हैं. ये भी अनियमितता को दर्शाता है. साइंटिस्ट का ये भी कहना है कि इस ममी में कई सारे जेनेटिक म्यूटेशन एक साथ हुए थे.

हालांकि, कुछ एक्सपर्ट्स का ये भी कहना है कि इतनी कम उम्र में पसलियां ठीक से बनी ही नहीं होंगी और यही कारण है कि इस कंकाल के सिर को लेकर भी ये थ्योरी निकाली जा रही है कि ये प्रीमैच्योर बच्चे का कंकाल हो सकता है.

नई इनवेस्टिगेशन के मुताबिक भट्टाचार्य और साथियों (जिनकी रिसर्च मार्च में पब्लिश हुई थी.) की किसी भी तकनीक से ये नहीं पता लगाया जा सकता कि एटा की असली उम्र क्या है. उनकी रिसर्च में कोई भी ऐसी तकनीक नहीं है जो असल में ये पता लगा सकें कि ये कंकाल कितना पुराना है.

रिसर्चरों का मानना है कि ये मिसकैरिज (बच्चा गिरने) का केस है और ये हाल ही का हो सकता है. इसे 40 साल से ज्यादा पुराना कोई नहीं बता सकता. ये किसी मां के उसके बच्चे को खोने की कहानी भी हो सकती है. इस कंकाल के डीएनए में काफी असमानताएं मिली हैं.

कंकाल का सिर काफी असमान है और हाथ और पैर पूरी तरह से विकसित नहीं लगते और इसलिए पेलिएंथ्रोपोलॉजिस्ट विलियम जंगर्स का कहना है कि ये मानव कंकाल है जो प्रीमैच्योर पैदा हुआ था और पैदा होते ही या फिर उसके कुछ समय के अंदर ही मारा गया था.

कुल मिलाकर हालिया स्टडी ने भी इस कंकाल के बारे में गुत्थी को सुलझाया नहीं बल्कि और उलझा दिया है. इसे एलियन कहें या इंसान ये अभी तक मिले ममी में से कुछ सबसे विवादित कंकालों में से एक रहा है. एटा असल में किसी एलियन का बच्चा है या फिर किसी मां के दुख की कहानी इसके बारे में रिसर्च अभी लंबी चलेगी.

The Island of Dead :Poveglia Island Italy.

दुनियाभर में बहोत सारी ऐसी जगह है, जो की बेहद रहस्यमयी और डरावनी है। कुछ जगह तो ऐसी भी है जिसपे भूतों का साया है। Poveglia Island यह भी एक ऐसी जगह में से एक है जो की इटली में है। इस पोवेग्लिया आयलंड के बारे में कहा जाता है, की सरकार ने इस जगह पर जाने की पाबंदी की है।

तो चलिए जानते है की Poveglia Island पर ऐसा क्या हुआ था, जिसकी वजह से इस जगह का नाम सुनते ही लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते है।

पोवेग्लिया आयलंड (Poveglia Island Italy):-

Poveglia Island एक ऐसा आयलंड है जिसे “Island of Death” (मौत का आइलैंड) भी कहा जाता है। यह पोवेग्लिया आयलंड इटली के वेनिस(Venis) और लीडो(Lido) शहर के बीच Venetian नाम के खाडी में स्थित है। एक छोटासा canal (नहर) इस आइलैंड को दो अलग अलग भागो में divide करता है। इस आयलंड के पीछे एक गहरा इतिहास छुपा हुआ है। इस जगह को Europe में सबसे ख़तरनाक जगह में से एक माना जाता है। यह एक ऐसा आइलैंड है, जिसका इतिहास ३००० सालों से भूतों से भरा हुआ है। तो जानते है इसके इतिहास के बारे में।

पोवेग्लिया आयलंड का इतिहास (History of Poveglia Island):-

कुछ सालों पहले बुबोनिक प्लेग (Bubonic Plague) की बीमारी आयी थी। इस प्लेग की बीमारी ने यूरोप के कई सारे शहरों को तहेस नहेस कर दिया था। उसमें Italy शहर भी शामिल था। इस प्लेग की वजह से बहोत सारे लोग मर रहे थे। तब Poveglia Island प्लेग पीड़ित लोगों के लिए रहने की जगह बन गया था। Use of Poveglia Island as a Plague Quarantine Station. 16 वी शताब्दी के शूरवात में ही Poveglia Island का उपयोग “Plague Quarantine Station” के रूप में करने लगे थे।

जिस भी व्यक्ति को प्लेग के लक्षण दिखाई देते थे, उन लोगों को पोवेग्लिया आइलैंड पर भेज देते थे। जो लोग प्लेग के बीमारी से मर रहे थे उनकी लांशो को भी इस आइलैंड पर लाके दफ़ना देते थे। जिसकी वजह से Poveglia Island में लाशों का ढेर बन गए थे। प्लेग पीड़ित लोगों को ४० दिन के लिए इस आइलैंड पर छोडा करते थे। वो लोग ४० दिन इसी इंतज़ार में गुज़ारते थे की, या तो वो यहा पे ही मर जाएँगे या फिर इस बिमारी से ठीक होकर अपने घर चले जाएँगे। लेकिन ज़्यादातर लोगों को मृत्यु ही हो जाती थी। फिर उनकी लाशों पर यहा पे ही अंतिम संस्कार किया जाता था।

“Plague Quarantine Station” ये योजना काफ़ी हद तक अप्रभावि थी। लेकिन उस वक़्त प्लेग का फैलाव रोखने के लिए सरकार को प्लेग पीड़ितों को शहर के बाहर रखना पड़ा था।

Plague Equipment (Poveglia Island):-

Poveglia Island सिर्फ़ १७ ऐकर का ही है, लेकिन यहा पर सदियों से १,६०,००० से भी ज़्यादा प्लेग पीड़ितों को रखा गया था। कहा जाता है की प्लेग के मरीज़ों को इस आइलैंड पर लाके ज़िंदा जला दिया जाता था। इसीलिए ये आइलैंड किसी नर्क की तरह दिखता है।

सन १७७७ में Venice शहर के आरोग्य अधिकारी ने इस आयलंड को अपने प्राथमिक प्लेग का Checkpoint बना दिया था। Venice शहर में जाने वाले किसी भी जहाज़ को जाँच पड़ताल के लिए सबसे पहले इस आइलैंड पर रुकना पड़ता है। अगर किसी भी जहाज़ के प्रवासी को प्लेग के लक्षण दिखते, तो उसे Poveglia Island पर ही छोड़ देते थे।

Poveglia- a Haunted Island:-

१८१४ तक Poveglia Island यहा का सबसे महत्वपूर्ण “Plague Quarantine station” बन गया था। यहा पर जो भी प्लेग मरीज़ जाता वो ९९% लौटके वापस नहीं जाता ऐसा लोग मानने लगे थे। कुछ लोगों का मानना है की, इस आइलैंड पर भूतों को साया है। कुछ लोगों को तो इस आइलैंड पर अजीबो ग़रीब आवाज़ें भी सुनाई देती थी। इसीलिए सब इसे मौत का आइलैंड कहने लगे थे।

Poveglia Island Mental Hospital:-

१९२२ में Poveglia Island पर एक mental hospital बनाया गया था। लेकिन उसके बाद एक अफ़वा फ़ैल गयी थी। उस अफ़वा के मुताबिक़ वहाँ के डॉक्टर अपने एक पेशंट पर इलाज कर रहे थे। और उसके बाद उस पेशंट ने इस आइलैंड के बेल टॉवर से गिरके अपनी जान दे दी। कुछ लोग ये भी कहते है की, वहाँ के मरीज़ों को और डॉक्टर को इस आइलैंड पर कुछ आत्माओं का साया महसूस हो रह था। इसीलिए १९६८ में यह हॉस्पिटल बंद हो गया था।

२०१४ में सरकार ने पोवेग्लिया आयलंड की नीलामी करने कोशिश की थी, लेकिन कोई भी इसे ख़रीदने के लिए तैयार नहीं था। वैसे भी इस जगह को कौन ख़रीदेगा जहाँ पर लांशो का ढेर लगा हुआ है। उसके बाद इस आइलैंड को बंद कर दिया गया।

पिछले कई सालों से, यह आइलैंड पर्यटकों के लिए भी बंद रखा गया है। सरकार किसी को भी इस आइलैंड पर जाने की अनुमति नहीं देता। मछुआरे भी इस आइलैंड के पास मछली पकड़ने नहीं जाते, क्यूँकि उनके जाल में इंसानो की हड्डियाँ आ जाती है। Poveglia Island पर जाना मतलब ख़ुद के लिए ख़तरा मोड़ लेने जैसा है। लेकिन आज भी इस आइलैंड का इतिहास सुनकर लोग डर जाते है।

1975 The Eirth Quiak Haicneng

1975 मचानक एक शहर Haicneng म Dog तथा अन्य जानवर बड़ा ही अजीब व्यवहार करने लगे जो बहुत ही ज्यादा विचित्र और समझ से परे था। जानवरों की यह हरकत बहुत ही ज्यादा परेशान कर देने वाली थी। चीनियों ने इसे रहस्यमयी संकेत समझा और उसके बाद पूरा “Haicheng” शहर खाली करा लिया गया। इसके कुछ घंटे बाद ही इस शहर में 7.3 मैगनेटयूड का शक्तिशाली भूकंप आया जिसके कारण लगभग पूरा शहर बर्बाद हो गया। जानवरों की यह विचित्र हर के आज तक एक पहली बनी हुई है।

किसी भी खतरे से बचने का सबसे सरल तरीका यह है कि हमें समय रहते पता चल जाये कि कब, कहाँ, क्या व कितना बड़ा होने वाला है और वैसा होने से पहले हम खतरे की सीमा से दूर चले जायें या फिर कुछ ऐसा करें जिससे या तो वह खतरा टल जाये या फिर उसका हम पर ज्यादा प्रभाव न पड़ पाये।जरा सोचिये!

यदि कोई पहले से बता दे कि कल शाम तीन बजे आपके शहर या गाँव के पास रिक्टर पैमाने पर 6.8 परिमाण का भूकम्प आने वाला है। ऐसे में आप क्या करेंगे? भूकम्प आने से पहले निश्चित ही आप और बाकी सभी लोग स्वयं ही सुरक्षित स्थानों पर चले जायेंगे। जो नहीं जायेंगे उनके साथ जबर्दस्ती भी की जा सकती है। नियत समय पर भूकम्प आयेगा और उससे संरचनाओं और घरों का जो नुकसान होना होगा हो जायेगा।

अब अगर आपको पता चल जाये कि आपके ऑफिस में बम लगा है तो आप क्या करेंगे? शायद पुलिस या बम स्क्वाड बुलायेंगे ताकि बम को निष्क्रिय किया जा सके या फटने से पहले बम को कहीं दूर ले जाया जा सके। अगर ऐसा न हो पाये तो आप निश्चित ही ऑफिस को खाली करके सुरक्षित स्थान पर चले जायेंगे।

आपदा के साथ भी ठीक यही लागू होता है। समय रहते ज्यादातर लोगों के सुरक्षित स्थानों पर चले जाने के कारण मानव क्षति काफी कम हो जायेगी। भूकम्प के बाद जैसे लोग गये थे वैसे ही वापस भी आ जायेंगे और समय बीतने के साथ स्थितियाँ भी सामान्य हो ही जायेंगी।

ठीक ऐसा ही कुछ अक्टूबर, 2013 में ओडिशा में आये फालिन चक्रवात की चेतावनी दिये जाने के बाद हुआ भी था। पर यह हमारा दुर्भाग्य ही तो है कि तमाम वैज्ञानिक उपलब्धियों के बाद भी अब तक भूकम्प की सफल भविष्यवाणी सम्भव नहीं हो पायी है।अब ऐसा भी नहीं है कि आज तक कभी किसी भूकम्प की सफल भविष्यवाणी की ही नहीं गयी है। वर्ष 1974 का दिसम्बर का महीना था।

ठंड अपने चरम पर थी और ऐसे में चीन के लियोनिंग (Liaoning) प्रान्त के हाइचिंग (Haicheng) क्षेत्र में शीतनिन्द्रा काल में साँपों को बड़ी संख्या में देखा गया। इसी के साथ क्षेत्र में भूकम्प के छोटे-छोटे झटके भी महसूस किये जाने लगे। जनवरी, 1975 होते-होते क्षेत्र से पालतू जानवरों के अस्वाभाविक व्यवहार की सूचनायें मिलने लगी और साथ ही समय बीतने के साथ छोटे भूकम्पों की आवृत्ति भी बढ़ गयी। फिर महसूस किये जा रहे इन छोटे भूकम्पों के प्रारूप में अस्वाभाविक समानता भी थी।

जानवरों का अस्वाभाविक व्यवहार तथा आ रहे छोटे भूकम्पों का प्रारूप; उपलब्ध सूचनाओं का विश्लेषण करने के बाद 4 फरवरी, 1975 को भूकम्प की औपचारिक चेतावनी जारी कर दी गयी। इसके बाद करीब 90,000 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया गया और चेतावनी जारी करने के ठीक 5.30 घण्टे बाद हाइचिंग शहर को 7.3 परिमाण के भूकम्प ने खण्डहर में बदल दिया।

भूकम्प की इस सफल और सटीक चेतावनी से जहाँ एक ओर भूकम्प में मरने वालों की संख्या 10,000 तक सीमित हो सकी वहीं दूसरी ओर इससे भूकम्प की भविष्यवाणी को लेकर पूरी दुनिया में आशा की लहर दौड़ गयी। लगा कि बस मनुष्य ने भूकम्प पर विजय प्राप्त कर ही ली है।

हालाँकि ज्यादातर वैज्ञानिक जानवरों के द्वारा भूकम्प का पूर्वाभास किये जाने पर विश्वास नहीं करते हैं परन्तु भूकम्प के पहले जानवरों के अस्वाभाविक व्यवहार के ऐतिहासिक अभिलेख उपलब्ध हैं। ईसा पूर्व 375 में ग्रीस के हेलिस शहर में आये भूकम्प से कुछ दिन पूर्व चूहों, साँपों सहित अन्य जानवरों ने शहर छोड़ दिया था।

खुशी का यह दौर हालाँकि बहुत लम्बा नहीं चल पाया। 28 जुलाई, 1976 को बिना किसी पूर्वसूचना या प्रत्यक्ष लक्षणों के आये 7.8 परिमाण के भूकम्प ने चीन के ताँगशान (Tangshan) शहर को जमींदोज कर दिया। इस भूकम्प में अधिकारियों द्वारा 2.43 लाख व्यक्तियों के मरने व 7.99 लाख व्यक्तियों के घायल होने की पुष्टि की गयी, परन्तु माना जाता है कि भूकम्प में मरने वालों की वास्तविक संख्या 6.55 लाख थी।

04 फरवरी, 1975 के हाइचिंग (Haicheng) भूकम्प की सफल भविष्यवाणी से उत्साहित वैज्ञानिकों व अन्य को 27 जुलाई, 1976 को चीन में ही आये ताँगशान (Tangshan) भूकम्प ने सकते में डाल दिया। हाइचिंग भूकम्प के विपरीत एकदम सन्नाटे में जो आया था यह और इसके आने से पहले वैज्ञानिक कोई भी प्रत्यक्ष लक्षण नहीं भाँप पाये थे। इस भूकम्प से पहले न ही जानवरों के व्यवहार में कोई परिवर्तन देखा गया और न ही क्षेत्र में आये छोटे भूकम्पों के प्रारूप में कोई असामान्यता।

भूकम्प पूर्वानुमान पर कार्य कर रहे वैज्ञानिकों को ताँगशान भूकम्प से हताशा तो अवश्य हुयी पर ऐसा भी नहीं है कि इसके बाद इस दिशा में काम बन्द कर दिया गया हो।भूकम्प आने के पहले प्रायः महसूस किये जाने वाले लक्षणों के आधार पर भूकम्प पूर्वानुमान पर आज भी शोध किया जा रहा है और जिन लक्षणों को आधार बना कर यह अध्ययन किये जा रहे हैं उनमें से कुछ निम्नवत हैंः

  1. प्राथमिक तरंगों की गति में बदलाव
  2. पृथ्वी की सतह के नीचे स्थित चट्टानों की विद्युत चालकता में बदलाव
  3. भू-स्तर परिवर्तन
  4. भूजल स्तर परिवर्तन
  5. रेडान गैस का रिसाव
  6. बड़े भूकम्प से पहले महसूस किये जाने वाले छोटे-छोटे भूकम्पों का प्रारूप
  7. जानवरों का अस्वाभाविक व्यवहार
  8. भूखण्डों की सापेक्षीय गति

यह सत्य है कि हर बड़े भूकम्प से पहले ऊपर दिये गये लक्षणों में से कुछ अवश्य देखने को मिलते हैं पर इन लक्षणों के दिखाई देने के बाद भूकम्प आ ही गया हो ऐसा अब तक पुष्ट नहीं हो पाया है। साथ ही हर भूकम्प के पहले कुछ विशिष्ट लक्षण जरूर दिखायी देते हैं पर यह लक्षण अन्य भूकम्पों से पहले दृष्टिगत नहीं होते हैं। भूकम्प आने से पहले महसूस किये जाने वाले लक्षणों में एकरूपता का न होना ही अब तक भूकम्प की सफल भविष्यवाणी सम्भव न हो पाने का एक बड़ा कारण है।

Voynich Manuscript.

15वीं शताब्दी में एक रहस्यमयी लिपि लीखी गई और इसे 240 पेजो की किताब में संकलित भी किया गया। वैज्ञानिक इसे Voynich Manuscript कहते हैं, लेकिन इस भाषा को आज तक नहीं पढ़ा जा सका है। इसे पढ़ने में वैज्ञानिक अभी तक 100 प्रतिशत असफल हैं। कई लोग दावा करते हैं कि इस लिपि को अन्य ग्रह से आए हुए लोगों ने लिखा है, लेकिन कारण जो भी हो आज तक यह लिपि बिल्कुल भी नहीं पढ़ी जा सकी है।

Mystery Book- 600 साल पुरानी किताब. जिसे आज तक कोई पढ़ नहीं सका है. हम बात कर रहे है उस किताब का नाम है “The Voynich Manuscript.” (द वॉयनिच मनुस्क्रिप्ट)

पूरी दुनिया भर में बहोत सी ऐसी Mysterious चीज़े है. जिन्हे आज तक ना कोई समझ सका है, ना उसके बारे में जान सका है. वैसे तो आपने बहोत सी रहस्यमयी चीजों के बारे में पढ़ा होगा. बहोत सारी रहस्यों की किताबे भी पढ़ी होंगी. लेकिन आज हम जिस Book के बारे में बात करने वाले है वो खुद ही एक रहस्य (Mystery) है. तो चलिए जानते है उस Mystery book के बारे में.

यह एक अज्ञात लिपि में लिखी गई किताब है. इस किताब को 600 साल पहले लिखा गया था. इसके लेखक कौन है? और इस किताब को कौन सी भाषा में, या फिर क्यों लिखा गया था? यह आज तक कोई नहीं जान पाया.कार्बन डेटिंग (Carbon Dating) द्वारा यह पता लगाया गया, कि यह मनुस्क्रिप्ट को साल 1404 से 1438 के बीच में, यानी कि 15 वी सदी में लिखा गया था.

इस किताब का नाम इटली की एक बुक डीलर Wilfrid Voynich के नाम पर रखा गया था, क्योंकि उन्होंने इस किताब को साल 1912 में खरीदा था. इस किताब में बहुत से Pages गायब है. इसके बावजूद भी, अभी भी इस किताब में तकरीबन 240 Pages है.

इसको लिखते समय बाएं से दाएं तरफ लिखा गया है. इसके साथ ही कुछ Page पर अलग चित्र है, तो कुछ Pages fold किए हुए है. इस किताब में ऐसी भाषा में कुछ लिखा गया है, जिसे आज तक कोई समझ नहीं पाया है. अगर आप इस Mystery Book को खोलेंगे, तो आपको समझ आएगा की इनमें से जो चित्र है, वो भी बहुत रहस्यमई है.

उसमें पेड़-पौधे के चित्र भी दिए गए हैं, लेकिन आप जानकर हैरान होंगे की उनमें से कुछ ऐसे पेड़ पौधों के चित्र है, जो कि धरती के किसी भी पेड़ पौधे से बिल्कुल ही अलग है. Book में दिए गए अलग अलग चित्रों से ऐसा अनुमान लगाया गया है की उन्हें अलग अलग हिस्सों में लिखा गया है.

Pendora Virus.

दुनिया में “पैंडोरा वायरस” एक ऐसा विचित्र वायरस है जिसे कुछ लोग परग्रही वायरस बताते हैं क्योंकि वैज्ञानिक आज तक इसका 93% प्रतिशत जैविक सरंचना ही नहीं समझ पाए हैं।

पैंडोरावायरस एक विशाल वायरस का जीनस है, जिसे पहली बार 2013 में खोजा गया था। यह किसी भी ज्ञात वायरल जीनस के भौतिक आकार में दूसरा सबसे बड़ा है। पांडोरावीरस में दोहरे फंसे हुए डीएनए जीनोम हैं, जिनमें किसी भी ज्ञात वायरल जीनस का सबसे बड़ा जीनोम है।

Dancing Plague.

1518वीं शताब्दी में रोमन शहर में एक ऐसी विचित्र नाचने वाली बीमारी फैली जिसे लोगों ने “Dancing Plague” का नाम दिया और इस रहस्यमई बीमारी को आज तक नहीं समझा जा सका। करीब 400 लोग जो एक रोमन शासित शहर में रहते थे, अचानक ही नाचना शुरु किया जो करीब एक महीने तक लगातार नाचते ही रहे कई लोगों ने इन्हें रोकने की कोशिश की परंतु वह नाकामयाब रहे। इन लोगों में से अधिकतर लोग थकान, दिल का दौरा तथा खून की नसें फट जाने के कारण मारे गए। यह बीमारी आज तक एक रहस्य बनी हुई है।

2020 में कोरोना वायरस ने लोगों को अपनी उंगलियों पर खूब नचाया है. लेकिन क्या कोई डांस करते-करते मर सकता है? अमूमन लोगों को नाचने का शौक होता है. लेकिन क्या आपने डांस की बीमारी या महामारी के बारे में सुना है? दरअसल, 1518 में अलसेस के स्ट्रासबर्ग (अब आधुनिक फ्रांस) में एक ऐसी महामारी ने दस्तक दी जिसके बारे में जानकर आप हैरान रह जाएंगे. लगभग 500 साल पहले फ्रांस में डांस की महामारी ने कई लोगों को अपनी चपेट में लिया.

चिकित्सक नोट, कैथेड्रल उपदेश, स्थानीय और क्षेत्रीय इतिहास, और स्ट्रासबर्ग नगर परिषद द्वारा जारी किए गए नोट समेत ऐतिहासिक दस्तावेज स्पष्ट करते हैं कि पीड़ितों ने डांस किया लेकिन क्यों यह नहीं पता. इस महामारी का प्रकोप जुलाई 1518 में शुरू हुआ जब एक महिला स्ट्रासबर्ग की एक गली में जमकर नाचने लगी. इसके बाद कई युवतियों ने उसके साथ नाचना शुरू कर दिया.

इनका डांस थम नहीं रहा था. यह इतने लंबे समय तक चला कि इसने स्ट्रासबर्ग मजिस्ट्रेट और बिशप का ध्यान आकर्षित किया. कुछ डॉक्टरों ने अंतत: हस्तक्षेप किया जिसके बाद पीड़ितों को अस्पताल में रखा गया.

इसको लेकर आज भी कई मत हैं कि वाकई डांस करने से लोगों की मौत हुई या नहीं. कुछ सूत्रों का दावा है कि एक समय पर प्रति दिन लगभग 15 लोगों को मार डाला. हालांकि, कुल कितनी मौत हुईं इसका जिक्र नहीं हुआ. इस दावे के मुख्य सूत्र जॉन वालर हैं, जिन्होंने इस विषय पर कई जर्नल लेख और किताब ‘ए टाइम टू डांस, ए टाइम टू डाई: द एक्स्ट्राऑर्डिनरी स्टोरी ऑफ द डांसिंग प्लेग 1518’ लिखी है.

एक मत के हिसाब से यह सब उन लोगों के द्वारा फफूंद या मनो-रासायनिक उत्पादों का सेवन करने की वजह से हुआ. आपको बता दें कि एर्गोटामाइन एरोगेट फंगी का मुख्य मनो-सक्रिय उत्पाद है; यह ड्रग लिसर्जिक एसिड डायथाइलैमाइन (एलएसडी -25) से संरचनात्मक रूप से संबंधित है और वह पदार्थ है जिसमें से एलएसडी -25 को मूल रूप से मिलाया गया था.

उसी फंगस को अन्य प्रमुख ऐतिहासिक विसंगतियों में भी मिलाया गया है, जिसमें ‘सलेम विच ट्रायल्स’ भी शामिल है, हालांकि अकेले एरोगेट के होने से यह असामान्य व्यवहार या मतिभ्रम का कारण नहीं होगा जब तक कि ओपियेट्स के साथ संयुक्त न हो।

इसे मास हिस्टीरिया या जन मनोचिकित्सा बीमारी में होने वाले साइकोजेनिक मूवमेंट डिसऑर्डर का उदाहरण भी बताया गया है, जिसमें कई लोग अचानक एक ही तरह का विचित्र व्यवहार प्रदर्शित करते हैं. महामारी पैटर्न में व्यवहार तेजी से और व्यापक रूप से फैलता है.

The probability of an Alien

कैपलर टेलिस्कोप एक ऐसी शक्तिशाली दूरबीन है जो हमें 1200 से भी ज्यादा संभावित दुनिया ढूंढने में मदद कर सकती है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि की करीब 37 तारों में से एक तारे के मंडल में एक धरती अवश्य होनी चाहिए परंतु फिर भी हम अभी तक किसी भी जीवन के बारे में नहीं जान सकें हैं। क्या हम इस विशाल ब्रह्माण्ड में बिलकुल अकेले हैं ?

फरवरी का महीना दुनिया में अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी। दुनिया के तीन देशों से अभियान सफलतापूर्वक मंगल तक पहुंचे। इनमें से एक रोवर मंगल की सतह पर सुरक्षित उतरने में सफल रहा, जिसकी तस्वीरें अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। हमारा अंतरिक्ष यान सौर मंडल की सीमाओं को छू रहा है।

हमारे खगोलविदों के पास एक उन्नत प्रकार की दूरबीन है। अब भी हमने गुरुत्वाकर्षण तरंगों के उत्सर्जन को पकड़ना शुरू कर दिया है। ऐसे में यह सवाल भी जायज है कि हम अभी भी दूसरे ग्रहों के एलियंस को क्यों नहीं खोज पा रहे हैं। एलियंस की अवधारणा 70 वर्ष से अधिक पुरानी है। पिछले दशक के मध्य से, कई वैज्ञानिकों ने एलियंस होने की संभावना व्यक्त की है।

2017 में, खगोलविदों ने हमारे सौर मंडल के बाहर पहली वस्तु देखी। जो पिंड पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी का 85 गुना था, उसे ओमुमुआ नाम दिया गया था। इस शरीर ने एलियंस के अस्तित्व के विचार को मजबूत किया था, इस शरीर का आकार बहुत ही असामान्य था। हार्वर्ड के प्रोफेसर एवी लोएब ने दावा किया कि इस शरीर का आकार ऐसा है कि ऐसा लगता है कि यह प्राकृतिक शरीर नहीं है, बल्कि एलियन द्वारा बनाई गई आकृति है। इस विचार को बहुत प्रचार मिला लेकिन इसे साक्ष्य की कमी के आधार पर वैज्ञानिक मान्यता नहीं मिल सकी, जो विज्ञान की बुनियादी जरूरतों में से एक है।

तो अब तक एलियंस की खोज क्यों नहीं की जा सकी, निश्चित रूप से हम अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में बहुत उन्नत हो गए हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि अंतरिक्ष हमारी कल्पना से बहुत बड़ा है। एक ग्रह पर पहुंचने और वहां तक ​​पहुंचने में एक अभियान बनाने में बहुत समय लगता है। अकेले मंगल पर जाने के लिए नासा के पर्सिस्टेंस रोवर को छह महीने से अधिक समय लगा। वह भी 26 महीने में एक बार आता है। साथ ही इस मुकाम तक पहुंचने में नासा को दशकों लग गए। फिलहाल, किसी ग्रह की जांच करने की प्राथमिकता सूक्ष्म जीवन और उसके संकेतों की खोज बनी हुई है। जो अपने आप में बहुत मुश्किल काम है।

यह उनकी अपेक्षा है कि हमारी दूरबीनों में उनकी क्षमता के उच्चतम परिणाम हैं।

अनुसंधान कई मामलों में उन्नत दूरबीनों की प्रतीक्षा कर रहा है। लेकिन अब खगोलविदों को नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप से बहुत उम्मीदें हैं। इसके अलावा, नासा के निगरानी रोवल ने मंगल से मिट्टी के नमूने एकत्र किए जाएंगे जिन्हें पृथ्वी पर लाया जाएगा।

वैज्ञानिकों को भी इससे काफी उम्मीदें हैं। इसी समय, अमेरिका में अंतरिक्ष के लिए निजी क्षेत्र के आगमन से काम में तेजी आने की उम्मीद बढ़ रही है। मंगल पर प्रयोगशाला, कई रोवर्स और कई ऑर्बिटर्स और जांचों पर पहुंचने के बाद भी, वैज्ञानिकों को मंगल पर जीवन के सूक्ष्म रूप का कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिला है।

नासा अब मंगल की सतह के नीचे से उम्मीद करता है कि पर्सिस्टेंस रोवर की जांच की जानी चाहिए। वैज्ञानिकों का कहना है कि एलियंस भी वही डर है जो इंसानों के पास हो सकता है।

भोजन की खोज जैसी चुनौतियां, किसी और के भोजन से बचने की प्राथमिकता को एलियंस को हमारे पास पहुंचने से रोकना चाहिए। पानी पर शोध से पता चला है, मिल्की वे में बाढ़ आ गई है, पृथ्वी जैसे ग्रह केवल मंगल पर जाने वाले हैं। इस समय, नासा मंगल पर एक मानव अभियान भेजने की तैयारी कर रहा है।

इसमें सबसे बड़ी समस्या मंगल की यात्रा के आगमन के लिए ईंधन, भोजन आदि की व्यवस्था करना है। ऐसे में बहुत बड़ी मात्रा में ले जाने वाले रॉकेट की जरूरत होगी। वर्तमान में, हमारे पास ऐसी क्षमता के एक प्रतिशत के साथ एक रॉकेट भी नहीं है। मंगल से, इन स्थानों पर जीवन की उम्मीद, मंगल केवल एक मिसाल या प्रयोगशाला की तरह है।

Yaangshi village in china.

चीन में यांग्सी नामक एक गांव बसा हुआ है जो अपने एक विचित्र कारण के लिए जाना जाता है। इस गांव की एक विशेषता है की इसमें रहने वाले लगभग लोग “बौने हैं। इस गाँव को लोग ‘बौनों’ का गांव भी कहते हैं। परंतु इस गांव में इतने अधिक लोग बौने क्यों होते हैं, यह अभी भी अज्ञात हैं।

इस गांव में रहने वाले 80 में से 36 लोगों की लंबाई मात्र दो फीट एक इंच से लेकर तीन फीट दस इंच तक है। इतनी ज्यादा तादाद में लोगों के बौने होने के कारण यह गांव बौनों के गांव के नाम से प्रसिद्ध है। गांव के बुजुर्गों के अनुसार उनकी खुशहाल और सुकून भरी जिंदगी कई दशकों पहले ही खत्म हो चुकी थी, जब उनके प्रांत को एक खतरनाक बीमारी ने अपनी चपेट में ले लिया था। जिसके बाद से कई लोग अजीब-गरीब हालात से जूझ रहे हैं। जिसमें ज्यादातर पांच से सात साल के बच्चे हैं। इस उम्र के बाद उनकी लंबाई रूक जाती है।

इस इलाके में बौनों को देखे जाने की खबरे 1911 से ही आती रही है। 1947 में एक अंग्रेज वैज्ञानिक ने भी इसी इलाके में सैकड़ो बौनों को देखने की बात कही थी। हालांकि आधिकारिक तौर पर इस खतरनाक बीमारी का पता 1951 में चला जब प्रशासन को पीड़ितों के अंग छोटे होने की शिकायत मिली।

1985 में जब जनगणना हुई तो गांव में ऐसे करीब 119 मामले सामने आए। समय के साथ ये रुकी नहीं, पीढ़ी दर पीढ़ी ये बीमारी भी आगे बढ़ती गई। इसके डर से लोगों ने गाँव छोड़ कर जाना शुरू कर दिया ताकि बीमारी उनके बच्चो में ना आये। हालॉकि 60 साल बाद अब जाकर कुछ हालात सुधरे है अब नई पीढ़ी में यह लक्षण कम नज़र आ रहे है।

वैज्ञानिक और विशेषज्ञ इस गांव की पानी, मिटटी, अनाज आदि का कई मर्तबा अध्ययन कर चुके है लेकिन वो इस स्थिति का कारण खोजने में नाकाम रहे है। 1997 में बीमारी की वजह बताते हुए गांव की जमीन में पारा होने की बात कही गई, लेकिन इसे साबित नहीं किया जा सका। वहीँ कुछ लोगो को मानना है की इसका कारण वो ज़हरीली गैसे है जो जापान ने कई दशको पहले चीन में छोड़ी थी, हालांकि यह एक तथ्य है की जापान कभी भी चीन के इस इलाके में नहीं पहुंचा था। ऐसे ही समय-समय पर तमाम दावे किए गए, लेकिन सही जवाब नहीं मिला।

अब गांव के कुछ लोग इसे बुरी ताकत का प्रभाव मानते हैं, तो कुछ लोगों का कहना है कि खराब फेंगशुई के चलते हो ऐसा हो रहा है। वहीं, कुछ का कहना ये भी है कि ये सब अपने पूर्वजों को सही तरीके से दफन ना करने के चलते हो रहा है।

The magic of Jo Girardelli.

साल 1854 में इंग्लैंड में रहने वाली Jo Girardelli ने एक अलग ही तरह का आग का खेल दिखाना शुरु किया, इस खेल को बहुत से लोग पसंद भी करने लगे। इस खेल में गिरादेल्ली’ एक गरम-गरम लाल दहकता हुआ लोहे का टुकड़ा निगल जाती थी, लेकिन इसके बावजूद उनको कोई भी नुकसान नहीं होता था।

यहां तक की वह दहकते हुए धातु के टुकड़े जैसे चाकू, तलवार अपने शरीर से सटाकर मोड़ देती थी और इन्हें अपनी जीभ से चाटा करती थी, लेकिन इसके बावजूद वह कभी भी नहीं जली और न ही इसे किसी प्रकार का कोई नुक्सान हुआ। वैसे बहुत सारे लोग इसे एक सामान्य चालाकी मानते थे लेकिन फिर भी कोई भी आज तक यह साबित नहीं कर पाया कि यह कैसे होता था।

Hoia Baciu

रोमानिया के ‘ट्रांसिलवेनिया’ जिले म Hoia Baciu नाम से एक रहस्यमयी जंगल है। यह जंगल बहुत सी भूतिया तथा रहस्यमयीं गतिविधियों के लिए बदनाम है। यह जंगल घूमने वाले बहुत से पर्यटक जब जंगल घूम कर वापस आते हैं तो उनके शरीर पर जले हुए तथा खरोचों के निशान होते हैं, लेकिन उनके उन लोगों के अनुसार उन्हें पता ही नहीं होता कि यह सब कैसे हुआ।

वही कुछ लोग यह भी दावा करते हैं कि अपनी जंगल यात्रा के दौरान उन्हें बीच के कुछ घंटे याद नहीं रहते, इन खोये हुए समय में क्या हुआ इसके बारे में वह पूरी तरह से अनजान होते है तथा वह इसे “लुप्त समय” कहते हैं। इस क्षेत्र के बहुत से लोग विश्वास करते हैं कि यह कुछ भूतिया घटनाओं या भूतिया गतिविधियों की जगह हैं परंतु कारण चाहे जो भी हो आज तक यह रहस्य समझ में नहीं आया है।

Mystery Of Rajrajeshwari Mandir.

RajRajeshwari Temple भारत का एक ऐसा प्राचीन मंदिर है। इस ‘राजराजेश्वरी मंदिर‘ के बारे में कहा जाता है की इस मंदिर की मूर्तियाँ बोलती है। हमारे भारत देश में बहोत सारे अदभुत और प्राचीन मंदिर है, और मंदिर एक ऐसा श्रदस्थान है जहाँ पर आके भक्तों को शांति और सुकून मिलता है।

भगवान के ऊपर का विश्वास और उनके प्रति श्रद्धा जिसकी वजह से पर्यटक और भक्त बहोत दूर दूर से इन मंदिरो में आते है। कुछ लोग अपने दर्द बाटने आते है, तो कुछ लोग रहस्यमय चीज़ों के बारे में जानने के लिए और मंदिरो की ख़ूबसूरती और उस जगह की पवित्रता को महसूस करने आते है।

आज हम बात करने वाले है “Raj Rajeshwari Tripur Sundari Temple” के बारे में, जहाँ पे बोलती है मूर्तियाँ। कभी कभी हमें कुछ ऐसी चीज़ों के बारे में पता चलता है, जिसकी वजह हम यह सोचने पर मजबूर होते है की, क्या सच में इस दुनिया में दैवी शक्ति है? हम बात कर रहे है “राज राजेश्वरी त्रिपूर सुंदरी मंदिर” (Raj Rajeshwari Tripur Sundari Mandir) की जो बिहार के बक्सर (Buxar) ज़िले में है।

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jyoti gupta
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