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Insulator Kya Hai Hindi – इंसुलेटर क्या है ?

इलेक्ट्रिसिटी की कल्पना इंसुलेटर और कंडक्टर के बिना नहीं की जा सकती। यहाँ इंसुलेटर के बारेमे विस्तार से समझेंगे। जिसमे इंसुलेटर क्या है? (Insulator Kya Hai Hindi) इंसुलेटर के प्रकार क्या है ? कैसे काम करता है ? इसे यहां विस्तार से समझेंगे।

Table of Contents

 What is Insulator  ? insulator Kya Hai Hindi ?

इलेक्ट्रिसिटी में जितना महत्व कंडक्टर का है, उतना ही महत्व इंसुलेटर का है। कंडक्टर इलेक्ट्रिसिटी का वहन करता है। और इंसुलेटर को इलेक्ट्रिसिटी के अवरोध करने के लिए लगाये जाते है।

इलेक्ट्रिसिटी बेहतरीन है। पर इसकी सुंदरता बनाये रखने के लिए इसे कही जगह रोकना पड़ता है। बिजली का अच्छा आउटपुट लेने के लिए इसे, सुरक्षित तरीके से इसका उपयोग करना पड़ता है।

कंडक्टर में विद्युत धारा पसार करने का मापदंड धातु है। जैसे अल्लुमिनियम से ज्यादा प्रवाह कॉपर कंडक्टर में होता है। थीक उसी तरह इलेक्ट्रिसिटी को दूर रखने के लिए इंसुलेटर में अलग – अलग मटेरियल का इस्तेमाल होता है।

इंसुलेटर को वोल्टेज की वैल्यू के आधार पर इसे लगाया हाई टेंशन लाइन एवं HT Yard में लगाये जाते है।

बिजली को वहन करते हुए तार और खम्भे के बिच में इंसुलेटर जरुरी है। जो तार को सपोर्ट देता है। और पोल को बिजली से दूर रखता है।

Insulator Kya Hai Hindi
Insulator kya hai Hindi

Definition of Insulator

विद्युत प्रवाह को रोकने के लिए विद्युत आवाहक मटेरियल से तैयार किया हुआ, अलग – अलग आकर के आवाहक उपकरण को इंसुलेटर कहा जाता है। इसका उपयोग विद्युत हाई टेंशन लाइन और HT Yard में किया जाता है।

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बिजली के बड़े बड़े खम्भे पर इलेक्ट्रिक तार और खम्भे को अलग रखने वाले आवाहक को इंसुलेटर कहते है ।

Insulator Meaning in Hindi

insulator को हिंदी में विसंवाहक कहते है। दूसरे शब्दों में कहे तो बिजली की धारा को रोकने वाला एक उपकरण।

इंसुलेटर में कोनसा मटेरियल का इस्तेमाल होता है ?

इंसुलेटर का मटीरियल विद्युत धारा को रोकने वाला होता है। इसमें कागज, लकड़ी, चिनाई मिट्टी, एस्बेस्टोस, पीवीसी और बकेलाइट जैसे पदार्थ विद्युत आवाहक होते है।

आवाहक बिजली को पसार नहीं होने देते। इसी पदार्थ से अलग – अलग रचना के इंसुलेटर तैयार किया जाता है। ये इंसुलेटर हाई टेंशन लाइन में इस्तेमाल किया जाता है।

Best Insulator Property – एक अच्छे इंसुलेटर का मटेरियल कैसा होना चाहिए ?

1 – इंसुलेटर की मैकेनिकल स्ट्रेंथ अच्छी होनी चाहियें।

2 – डाइलेक्ट्रिक स्ट्रेंथ अच्छी होनी चाहिए। जितनी ज्यादा होगी इतना ज्यादा वोल्टेज के लिए उपयोग काम कर सकता है।

3 – इंसुलेशन के मटीरियल में किसी भी तरह की मिलावट नहीं होनी चाहिए।

4 – इंसुलेटर पे तापमान की ज्यादा असर नहीं होनी चाहिए।

5 – इंसुलेशन रेजिस्टेंस अच्छा होना चाहिए।

6- किसी भी आकर इसे तैयार कर सके ऐसा मटेरियल होना चाहिए।

7- इंसुलेटर मटेरियल में फायर नहीं पकड़ना चाहिए। और पानी से किसी भी प्रकार का असर नहीं होना चाहिए ।

Types Of Insulator – इंसुलेटर के प्रकार

बिजली की ट्रांसमिशन लाइन के बड़े बड़े खम्भे हमें दिखाई देते है। ये खम्भे से जुड़े तार इलेक्ट्रिसिटी का वहन का काम करते है। ये तार के सपोर्ट के लिए हम इंसुलेटर लगाते है। ये इंसुलेटर मटेरियल और इसके उपयोग के आधार पे कही प्रकार के होते है। जिसे निचे विस्तार से बताया गया है।

Types of Insulator
Basis on MaterialBasis on Use
Glass InsulatorDisc InsulatorSuspention Insulator
Porcline InsulatorPin InsulatorPost Insulator
Jio polimer InsulatorShakle InsulatorStrain Insulator
 Reel InsulatorStray Insulator
Insulator Kya Hai Hindi

Types of insulator on Basis of Use   – उपयोग के आधार पर इंसुलेटर के प्रकार 

इंसुलेटर के उपयोग के आधार पर उसकी रचना के आधार पर अलग – अलग नाम दिए जाते है। यहां हम सभी प्रकार के इनसुअलटोर की चर्चा करेंगे ।

Pin insulator  – पिन टाइप इंसुलेटर 

पिन इन्सुलेटर सिरामिक, रबर, सिलिकॉन, पॉलीमर एवं पोर्सेलियन में से बनाये जाते है। पिन इंसुलेटर का उपयोग 415 वाल्ट से लेकर 33 kv तक किया जाता है।

पिन इंसुलेटर को हम वोल्टेज वैल्यू के मुताबिक उपयोग कर सकते है। लॉ वोल्टेज के लिए यदि एक पिन इंसुलेटर का उपयोग करते है। तो जैसे वोल्टेज बढ़ते है, वैसे इंसुलेटर की संख्या बढ़ानी पड़ती है।

Insulator kya hai hindi
Insulator Kya Hai Hindi

आमतौर पर 11 KV की लाइन और 11 KV के स्विच यार्ड में इसका इस्तेमाल करते है। ओवर हेड लाइन सीधी होती है, तो पिन इंसुलेटर का उपयोग करना बेहतर है।

हाई टेंशन वायर पिन इंसुलेटर के टॉप के सपोर्ट के आगे बढ़ती है। यदि ओवर हेड लाइन सीधी नहीं होगी तो, वायर निचे आने की संभावना बढ़ जाती है। वैसे ओवर हेड वायर को तार से लपेटा जाता है। फिर भी लाइन सीधी नहीं होगी तो इंसुलेटर टेन्शन में रहता है।

Shackle insulator  – शेंकल इंसुलेटर 

आमतौर पर shackle इंसुलेटर में पोर्सिलेन का उपयोग होता है। इसके आलावा फाइबर ग्लास और सिरामिक से भी बनाया जाता है।

shackle इंसुलेटर horizantal और वर्टिकल दोनों प्रकार से लगा सकते है। इस प्रकार के इंसुलेटर लॉ वोल्टेज में उपयोग किया जाता है।

Shackle इंसुलेटर में D ‘ टाइप का क्लैंप होता है। इस क्लैंप के बीचमे इंसुलेटर होता है। D’ Clamp को खम्भे के साथ नट बोल्ट से टाइट किया जाता है।

इंसुलेटर के बीचमे V आकर का ग्रूव होता है। इसमें से वायर पसार किया जाता है। और इस ओवर हेड लाइन के वायर सॉफ्ट तार से बांध दिया जाता है।

इस प्रकार के इंसुलेटर की मैकेनिकल स्ट्रेंथ अच्छी है। जहा एंगल बनता हो, ऐसी स्थिति में ये इंसुलेटर बहुत कारगर है।

Disc Insulator – डिस्क इंसुलेटर 

डिस्क इंसुलेटर सबसे ज्यादा उपयोग होने वाले इंसुलेटर है। डिस्क इंसुलेटर 11 kv वोल्टेज के लिए बनाये जाते है। पर सबसे बड़ा लाभ इसमें यह है, की जितनी डिस्क जोड़ेंगे इतने ज्यादा वोल्टेज लेवल तक इसे इस्तेमाल कर सकते है।

डिस्क इंसुलेटर ग्लास और पोर्सेलियन में से बनाये जाते है। डिस्क इंसुलेटर 11kv, 22 kv, 33 kv, 66kv, 110 kv, 220kv, 400 kv तक इस्तेमाल होता है।

डिस्क इंसुलेटर में अलग – अलग वोल्टेज लेवल के आधार पर डिस्क की संख्या बदलती है। कितने वोल्टेज पे कितनी डिस्क लगेगी इसके लिए एक फार्मूला है, जिसे हम निचे देख सकते है।

Disc Insulator Formula

N =X KV /(√3 *11 KV )

N = डिस्क की संख्या
X KV = वोल्टेज लेवल की वैल्यू
11 KV = एक डिस्क इंसुलेटर की कैपेसिटी

यहाँ हम एक उदाहरण से समझते है।
HT ओवर हेड लाइन का वोल्टेज 220 KV समझते है।

N = 220 KV/(√3 *11 KV) = 11. 54

यदि हम एक स्टेप आगे का पकडे तो हमें 12 लगा सकते है। पर इलेक्ट्रिसिटी में वोल्टेज लोड के साथ थोड़ा वेरिएशन होता है। इसीलिए यहाँ 13 इंसुलेटर की डिस्क लगानी पड़ेगी।

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Suspention Insulator

सस्पेंशन इंसुलेटर ये डिस्क इंसुलेटर की तरह ही है। ग्लास अथवा पोर्सेलियन इंसुलेटर की डिस्क को जोड़कर यह इंसुलेटर को तैयार किया जाता है। ये इंसुलेटर लाइन कंडक्टर को अलग करता है और सपोर्ट करता है।

जैसे हमने डिस्क इंसुलेटर में देखा एक डिस्क 11 kv वोल्टेज लेवल की होती है। इसी डिस्क को वोल्टेज के हिसाब से जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार के इंसुलेटर हाई वोल्टेज की ओवर हैड लाइन में उपयोग किया जाता है।

इस प्रकार के इंसुलेटर के निचे वायर रहता है। याने पसार होने वाला वायर इंसुलेटर की आखरी डिस्क के साथ कनेक्ट होता है। इस प्रकार के इंसुलेटर में यदि डिस्क ख़राब हो जाती है, तो इसे बदल दिया जाता है।

Suspention Insulator Disc as per voltage level

सस्पेंशन इंसुलेटर में कितने वोल्टेज पे कितनी डिस्क लगायी जाती है। इसका एक कैलकुलेशन निचे के टेबल में दिया गया है।

Sr. No.Voltage Level in KVNo.of Disc for Suspention insu.
133kv3
266kv4
3110 kv6
4132 kv8
5155 kv11
6220 kv14
7280kv15
8340kv18
9360kv23
10400kv24
11500kv34
12600kv44
13750kv59
14765kv60
Insulator Kya Hai Hindi
Advantage of Suspention Insulator  

1- सस्पेंशन इंसुलेटर का हरेक यूनिट 11 KV का होता है। वोल्टेज लेवल के आधार पे लगाया जाता है।

2- सस्पेंशन इंसुलेटर के किसी एक यूनिट डैमेज होता है, तो उसे बदल सकते है। पूरा इंसुलेटर बदलने की जरुरत नहीं होती।

3- सस्पेंशन इंसुलेटर में बहुत ही अच्छी फ्लेक्सिबिलिटी होती है।

4- कंडक्टर निचे कनेक्ट होने के कारण आकाशी बिजली का भय नहीं रहता।

Post insulator  – पोस्ट इंसुलेटर 

पोस्ट इंसुलेटर में दोनों तरफ क्लैंप का इस्तेमाल किया जाता है। यह इंसुलेटर 33 kv से ज्यादा वोल्टेज लेवल के लिए इस्तेमाल होता है। ज्यादातर पोस्ट इंसुलेटर सिरामिक से बनाये जाते है।

यदि वोल्टेज लेवल ज्यादा है, तो इसके साथ और भी इंसुलेटर जोड़ सकते है। यह इंसुलेटर देखने में सुन्दर लगता है। और इसकी विश्वासनियता भी बहुत अच्छी है।

इस प्रकार के इंसुलेटर में तार को ऊपर क्लैंप से बांधा जाता है।

पोस्ट इंसुलेटर अलग – अलग मॉडल में होते है। हम हमारी जरूरियात के अनुसार उपयोग कर सकते है।

पोस्ट इंसुलेटर को हम 1100KV वोल्टेज लेवल तक इस्तेमाल कर सकते है।

Stay insulator  –  स्टे इंसुलेटर 

गांव में बिजली के खम्भे के नजदीक एक तार जमीन में कनेक्ट होता है। स्टे इंसुलेटर का उपयोग उसी तार में ज्यादा होता है।
ओवर हेड लाइन में वायर को टर्न करना पड़े या मोड़ना पड़े तो ऐसी जगह पे अक्षर स्टे टाइप का इंसुलेटर लगाया जाता है।

स्टे इंसुलेटर में होल होते है। आमने सामने दो गृप रहती है। इसे अलग – अलग तरह से कनेक्ट किया जाता है। पर सभी का काम लाइव वायर को दूर रखना है।

Stay इंसुलेटर को पोर्सिलिन से बनाया जाता है।

स्टे इंसुलेटर की एक खासियत है, की वायर यदि टूट जाये, जमीं पर गिर जाये तो भी लाइव वायर ग्राउंड को टच नहीं करता।

Difference Between Insulator and Conductor  – इंसुलेटर और कंडक्टर के बिच का अंतर 

Sr. No.InsulatorConductor
1इंसुलेटर से विद्युत प्रवाह पसार नहीं हो सकता।कंडक्टर से विद्युत प्रवाह पसार होता है।
2इंसुलेटर में थर्मल कंडक्टिवित्य बहुत कम है।कंडक्टर में थर्मल कंडक्टविटी बहुत ज्यादा होती है।
3इसमें प्रतिरोध बहुत ज्यादा होता है।इसमें प्रतिरोध बहुत कम होता है।
4इंसुलेटर में मैग्नेटिक फील्ड स्टोरेज नहीं होती।कंडक्टर में मैग्नेटिक फील्ड स्टोरेज होती है।
5इसकी कंडक्टिवित्य बहुत कम होती है।कंडक्टिवित्य बहुत ज्यादा होती है।
6इंसुलेटर में इलेक्ट्रान की मूवमेंट नहीं होती।इंसुलेटर में इलेक्ट्रान की मूवमेंट फ्री नहीं होती।
7Example – रबर, लकड़ी, कागजExample  – लोखंड, अल्लुमिनियम, सिल्वर, कॉपर
8इलेक्ट्रिकल केबल्स वायर के ऊपर इंसुलेशन और सपोर्ट के लिए इस्तेमाल किया जाता है।इलेक्ट्रिक वायर और तार बनाने में उपयोग किया जाता है।
Insulator Kya Hai Hindi

Types of insulator Basis on Material  – मटेरियल के आधार पर इंसुलेटर के प्रकार 

मटेरियल के आधार पर इंसुलेटर के तीन प्रकार है। तीनो प्रकार के इंसुलेटर हाई टेंशन लाइन में इस्तेमाल होते है। तीनो प्रकार के इंसुलेटिंग पदार्थ के लक्षण थोडे – बहुत अंतर है। इसे विस्तार से समझते है।

 पोर्सेलिन इंसुलेटर (Porcelin Insulator)

पोर्सिलिन एक बेहतरीन इंसुलेशन मटेरियल है। आज के समय में पोर्सिलिन इंसुलेटर दिखाई देता है। सभी प्रकार के वोल्टेज लेवल के इंसुलेटर पोर्सिलिन से बनाये जाते है।

1 – पोर्सिलिन इंसुलेटर हमें अलग – अलग आकर में देखने को मिलती है। जो दूसरे इंसुलेटर में ये नहीं मिलता है।

2 – पोर्सिलिन की बानी इंसुलेटर बहुत ही स्मूथ होती है। इसीलिए इस्पे डस्ट और मॉइस्चर कम लगता है।

3 – स्ट्रेंथ अच्छी होने कारण डैमेज कम होता है।

4- इस इंसुलेटर को स्क्रैप करते है, तो इसका पर्यावण पे कोई ख़राब असर नहीं होता।

5- पोर्सिलिन इंसुलेटर की डाइलेक्ट्रिक स्ट्रेंथ 60 KV/CM है।

6- हम जरुरत के अनुसार इसकी डिज़ाइन कर सकते है।

Glass insulator  – ग्लास इंसुलेटर 

1 – ग्लास इंसुलेटर की डाइलेक्ट्रिक स्ट्रेंथ बहुत अच्छी होती है। यदि हम इसकी तुलना पोर्सिलिन से करे तो ग्लास की स्ट्रेंथ बहुत बेहतर है।

2 – ग्लास इंसुलेटर की डाइलेक्ट्रिक स्ट्रेंथ 140 kv/cm होती है।

3 – ग्लास इंसुलेटर जल्दी हीट नहीं होता।

4 – पोर्सिलिन की तुलना में कीमत भी कम होती है।

5- सिरामिक की तुलना में मैकेनिकल कम्प्रेस्सिवे स्ट्रेंथ 1.5 टाइम्स ज्यादा है।

Disadvangate – ग्लास इंसुलेटर के गेरलाभ 
  •  ग्लास इंसुलेटर का सबसे बड़ा गेरलाभ उसमे नमी जमा हो जाती है।
  •  मॉइस्चर के कारण वहां धूल जमा हो जाती है। और लीकेज करंट के समय यहाँ फ्लेस ओवर शार्ट सर्किट के चांस बढ़ जाते है।
  •  इस प्रकार के इंसुलेटर को अलग – अलग आकर में बनाना मुश्किल है।

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Polymer insulator – पॉलीमर इंसुलेटर 

1 – इस प्रकार का इंसुलेटर वजन में बहुत की हल्का होता है।

2 – इस प्रकार के इंसुलेटर को फिटिंग करना बहुत ही आसान है।

3 – पॉलीमर इंसुलेटर फ्लेक्सिबल होती है। इसीलिए ये टूटने का चांस नहीं होता।

4 – डस्ट वाले एरिया में सबसे अच्छा इंसुलेटर माना जाता है। जिसके ऊपर पोल्लुशन का असर कम होता है।

5 – इसकी टेंसाइल स्ट्रेंथ पोर्सिलिन से ज्यादा होती है।

Disadvantage – पॉलीमर इंसुलेटर के गेरलाभ 
  •  समुद्र तट के इलाके में इसका उपयोग नहीं किया जाता। समुद्र का नमक वाला मॉइस्चर पॉलीमर को ख़राब कर देता है।
  •  लाइफ बहुत कम होती है।
  •  ज्यादातर 11 kv में ही यूज़ होता है।

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इंसुलेटर से जुड़े इस आर्टिकल ( insulator Kya Hai hindi )  में इंसुलेटर के सभी प्रकार की चर्चा हुई है। फिर भी इंसुलेटर से जुड़ा कोई सवाल है, तो आप कमेंट बॉक्स में लिख सकते हो।

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