Class 6 Sanskrit Chapter 8 Notes Summary बुद्धिः सर्वार्थसाधिका
बुद्धिः सर्वार्थसाधिका Class 6 Summary
जीवन में कितनी भी विषम परिस्थिति हो । यदि समय रहते बुद्धि से उचित समाधान ढूँढ़ा जाए तो सफलता अवश्य ही प्राप्त होती है। यही सत्य प्रस्तुत पाठ में एक रोचक कथा के माध्यम से बताया गया है। एक जलपूर्ण सरोवर में चारों ओर शशक (खरगोश) बिल बनाकर रहते थे। एक बार प्यास से व्याकुल हाथियों का समूह वहाँ आया।
हाथियों के पैरों से खरगोश क्षतविक्षत हुए और कई मर गए। तब उन्होंने सभा कर अपनी रक्षा का उपाय सोचा। एक खरगोश ने अपनी बुद्धि के बल से हाथियों के समूह से किस प्रकार सरलता से छुटकारा पा लिया। छोटा-सा जीव होते हुए भी बुद्धि बल से विशालकाय हाथियों के झुण्ड से अपने समूह की रक्षा की। सत्य ही कहा गया है- ‘बुद्धि से सब कार्य सिद्ध होते हैं।’
बुद्धिः सर्वार्थसाधिका Class 6 Notes
मूलपाठः, शब्दार्थाः, सरलार्थाः, अभ्यासकार्यम् च
(क)
एकस्मिन् वने एक: नित्यजलपूर्णः महान् सरोवर:
अस्ति । कदाचिद् एकं पिपासाकुलं गजयूथं वनान्तरात्
तत्र आगच्छति । तस्मिन् सरोवरे ते गजाः स्वेच्छया जलं
पीत्वा स्नात्वा, क्रीडित्वा च सूर्यास्तसमये निर्गच्छन्ति ।
तस्य च सरोवरस्य तीरे समन्तात् सुकोमलभूमौ बहूनि
शशक – बिलानि सन्ति येषु बहवः शशकाः निवसन्ति ।
गजानां परिभ्रमणेन तेषु बिलेषु निवसन्तः बहवः शशका:
क्षतविक्षता: भवन्ति केचन पुनः मृताः अपि भवन्ति ।
अतः शशकाः भीताः चिन्तामग्नाः च भवन्ति । ते दु:खम्
अनुभवन्ति । स्वरक्षार्थं च ते उपायं चिन्तयन्ति ।
शब्दार्था:-
एकस्मिन् वने – एक वन में।
सरोवर :- तालाब |
गजयूथं – हाथियों का समूह।
गजः – हाथी ।
स्वेच्छया- अपनी इच्छा से ।
पीत्वा – पीकर
स्नात्वा – स्नान करके।
क्रीडित्वा – खेलकर |
येषु – जिनमें ।
शशकः – खरगोश |
निवसन्तः -रहते हुए |
क्षतविक्षता :- घायल |
मृताः – मरे हुए।
भीताः – डरे हुए।
चिन्तामग्नाः – चिन्तित ।
स्वरक्षार्थं – अपनी रक्षा के लिए।
सरलार्थ:-
एक वन में जल से हमेशा भरा हुआ महान सरोवर है। कभी एक प्यास से व्याकुल हाथियों का समूह दूसरे वन से वहाँ आता है। उस सरोवर में वे हाथी अपनी इच्छा से जल पीकर स्नानकर, खेलकर, सूर्यास्त समय निकलते हैं। और उस सरोवर के किनारे चारों ओर मुलायम भूमि पर बहुत से ख़रगोश का बिल हैं। जिनमें बहुत-से खरगोश निवास करते हैं। हाथियों के घूमने से उन बिलों में रहने वाले बहुत से खरगोश क्षत-विक्षत (घायल) हो जाते हैं। और कुछ मृत भी हो जाते हैं। अतः खरगोश भयभीत और चिंतामग्न होते हैं। वे दुख का अनुभव करते हैं और वे अपनी रक्षा के लिए उपाय सोचते हैं।
(ख)
एकस्मिन् दिने सायङ्काले तेषां शशकानां सभा भवति । सर्वे शशकाः स्वमतं प्रकाशयन्ति । परं ते समाधानं न प्राप्नुवन्ति । अन्ते शशकराजः वदति – ” अहमेव उपाय चिन्तयामि । अधुना वयं सर्वे स्वगृहं गच्छामः । ”
अन्यस्मिन् दिवसे रात्रौ सः शशकराजः यूथाधिपस्य गजराजस्य समीपं गच्छति। सः गजराजं कथयति – ” हे गजराज ! एषः सरोवर: चन्द्रस्य वासस्थानम् अस्ति । वयं शशकाः तस्य प्रजाः स्मः, अत एव सः शशाङ्कः इति नाम्ना प्रसिद्धः । यदा शशकाः जीवन्ति तदा एव चन्द्रः प्रसन्नः भवति । ”
शब्दार्था:-
सायङ्काले – शाम को ।
सभा – मीटिंग |
स्वमतं – अपना विचार ।
प्रकाशयन्ति – प्रकट करते हैं।
समाधानं – हल |
प्राप्नुवन्ति – प्राप्त करते हैं।
अधुना – अब
अन्यस्मिन् – दूसरे दिन ।
रात्रौ – रात में।
यूथाधिपस्य- समूह के सरदार के ।
वासस्थानम् – रहने का स्थान ।
शशाङ्कः – चन्द्रमा ।
तस्य- उसकी।
नाम्ना – नाम से।
जीवन्ति – जीवित हैं।
सरलार्थ:- एक दिन सांयकाल में उन खरगोशों की सभा होती है। सभी खरगोश अपना विचार प्रकट करते हैं। पर वे समस्या का समाधान प्राप्त नहीं कर पाते हैं। अंत में खरगोशों का राजा कहता है मैं ही उपाय सोचता हूँ। इस समय हम सभी अपने घर जाते हैं।
दूसरे दिन रात में वह खरगोशों का राजा हाथियों के समूह के राजा के पास जाता है। वह गजराज से कहता है- ” हे गजराज ! यह सरोवर चंद्रमा का निवास स्थान है। हम खरगोश उसकी प्रजा हैं अतः वह चन्द्रमा इस नाम से प्रसिद्ध है। जब खरगोश जीवित हैं तब ही चंद्रमा प्रसन्न होता है।
(ग)
गजराजः पृच्छति–“कथम् अहं विश्वासं करोमि? किं सत्यमेव चन्द्रः सरोवरे तिष्ठति ? ” यदि सरोवर: चन्द्रदेवस्य वासस्थानं तर्हि तत् प्रदर्शयतु। शशक : कथयति – आम्, चन्द्रस्य दर्शनाय आवाम् अधुना एव सरोवरं प्रति चलावः । ”
गजराजः शशकराजेन सह सरोवरस्य समीपं गच्छति । सः जले चन्द्रस्य प्रतिबिम्बं पश्यति चकित: च भवति, सः भयेन चन्द्रं नमति, ततः सः गजयूथेन सह अन्यत्र गच्छति । सः गजयूथः पुनः कदापि तस्य सरोवरस्य समीपं न आगच्छति । शशकाः तत्र सुखेन तिष्ठन्ति । सत्यम् एव उक्तम्- ‘बुद्धिः सर्वार्थसाधिका’ ।
शब्दार्था: –
गजराजः – हाथियों का राजा ।
विश्वास – विश्वास |
तिष्ठति – रहते हैं।
तर्हिः – तो
प्रदर्शयतु – दिखाइए ।
दर्शनाय – देखने के लिए।
प्रतिबिम्ब-परछाई ।
अन्यत्र – और कहीं ।
पुनः- फिर ।
कदापि – कभी भी ।
उक्तम् – कहा गया।
सरलार्थ:- गजराज पूछता है – मैं कैसे विश्वास करूँ? क्या सच में चंद्रमा सरोवर में रहता है? यदि सरोवर चंद्रदेव का निवास स्थान है तो वह दिखाइए । खरगोश कहता है – हाँ। चंद्रमा के दर्शन के लिए हम दोनों अभी ही सरोवर की ओर चलते हैं।
गजराज शशकराज के साथ सरोवर के समीप जाता है। वह जल में चंद्रमा का प्रतिबिंब देखता है और चकित होता है। वह भय से चंद्रमा को नमन करता है। उसके बाद वह गजराज के साथ और कहीं जाता है । वह गजराज फिर कभी उस सरोवर के समीप नहीं आता है। खरगोश वहाँ सुखपूर्वक रहते हैं। सत्य ही कहा गया है-
“बुद्धि से सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं “।