Class 6 Sanskrit Chapter 7 Notes Summary अतिथिदेवो भव
अतिथिदेवो भव Class 6 Summary
प्रस्तुत पाठ ‘अतिथिदेवो भव’ (अर्थ – अतिथि को देवता के समान समझो ) भारतीय संस्कृति में अतिथि के महत्त्व को इंगित करने वाला सूत्र है। यह अवधारणा नमस्ते ( अर्थ – मैं आपके सामने नतमस्तक हूँ) से भी आगे जाती है। यह तैतरीय देवता उपनिषद् के शिक्षा – वल्ली में आया हुआ है। शिक्षा प्रदान करने के बाद आचार्य विद्यार्थियों को विदाई के पहले यह कहते हैं।
मातृदेवो भव, पितृदेवो भव, आचार्यदेवो भव, अतिथिदेवो भव माता को देवता समझो, पिता को देवता समझो, आचार्य को देवता समझो, अतिथि को देवता समझो ) ।
हमारे देश में न केवल मनुष्यों को बल्कि अन्य प्राणियों को भी अतिथि की भावना से पूजा जाता है। अतिथि की सेवा पाँच महायज्ञों के समान होती है। ‘अतिथिदेवो भव’ यह वचन से अतिथि सेवा का भाव सभी प्राणियों में जागृत होता है।
अतिथिदेवो भव (माता को देवता समझो, पिता को देवता समझो, आचार्य को देवता समझो, अतिथि को देवता समझो) ।
हमारे देश में न केवल मनुष्यों को बल्कि अन्य प्राणियों को भी अतिथि की भावना से पूजा जाता है। अतिथि की सेवा पाँच महायज्ञों के समान होती है। ‘अतिथिदेवो भव’ यह वचन से अतिथि सेवा का भाव सभी प्राणियों में जागृत होता है।
अतिथिदेवो भव Class 6 Notes
मूलपाठः, शब्दार्थाः, सरलार्थाः, अभ्यासकार्यम् च
(क)
राधिका एषु दिनेषु कूर्दमाना एव चलति । यतः गृहे नूतनाः अतिथयः सन्ति । ते च विशिष्टाः सन्ति । माता, पुत्रौ पुत्र्यौ च मिलित्वा ते तत्र पञ्च सन्ति । अहोरात्रं तस्याः चिन्ता एकत्र एव । गृहस्य छद्याः उपरि । तत्र एव तस्याः मनः अस्ति । कुतूहलम् अस्ति के ते इति ? ते न अन्ये, काचित् मार्जारी तस्याः चत्वारः शावकाः च । आम्, ते एव विशिष्टाः अतिथयः । सा तु तेषां नामानि अपि चिन्तितवती – तन्वी, मृद्वी, शबल:, भीमः च इति ।
शब्दार्था:-
कूर्दमाना – कूदती हुई ।
यतः – क्योंकि ।
नूतना: – नये ।
अतिथयः – मेहमान |
विशिष्टाः – विशेष |
मिलित्वा-मिलकर |
अहोरात्रं- दिन-रात |
एकत्र – इकट्ठी ।
छद्याः उपरि – छत के ऊपर ।
काचित् – कोई।
मार्जारी- बिल्ली |
शावका:- बच्चे ।
चिन्तितवती – सोचती है।
सरलार्थ:- राधिका इन दिनों में कूदती हुई ही चलती है। क्योंकि घर में नए अतिथि हैं और वे विशिष्ट (विशेष) हैं। माँ, दो पुत्र और दो पुत्री मिलकर वहाँ पाँच हैं।
दिन-रात उन्हीं की चिंता इकट्ठी रहती है। घर के छत के ऊपर। वहीं उसका मन है। कौतूहल (उत्सुकता ) है वे कौन हैं? वे अन्य नहीं, कोई बिल्ली और उसके चार बच्चे हैं। हाँ, वे ही विशेष अतिथि हैं। उसने उनके नाम भी सोचे हैं – तन्वी, मृद्वी, शबल और भीम इस प्रकार हैं।
(ख)
तन्वी आकृत्या सुन्दरी, मृद्वी स्पर्शेन अतीव
कोमला । शबल: चित्रवर्णः तथा च भीमः किञ्चित् स्थूलः । मार्जारी कदा गच्छति, कदा आगच्छति एतत् सर्वम् अपि राधिका जानाति । सा मार्जार्यै क्षीरं ददाति । मार्जारी पिबति । अनन्तरं सा सधन्यवादं राधिकां पश्यति । किंतु शावकानां समीपं राधिका गच्छति चेत् मन्दं मन्दं पृष्ठतः आगच्छति। राधिकां दृष्ट्वा शावकाः भीताः न भवन्ति । पितामही राधिकायाः कार्यकलापान् दृष्ट्वा हसति ।
शब्दार्थाः-
आकृत्या – आकृति से।
किञ्चित् – कुछ।
स्थूलः – मोटा |
मार्जारी – बिल्ली।
कदा – कब ।
क्षीरं – दूध
पिबति – पीती है।
चेत् – यदि ।
मन्दं मन्दं – धीरे-धीरे ।
पृष्ठतः – पीछे-पीछे।
कार्यकलापान् – गतिविधियों का ।
दृष्ट्वा – देखकर।
सरलार्थ:- तन्वी आकृति (शरीर) से सुंदर, मृद्वी स्पर्श से अत्यंत कोमल। शबल चीते के वर्ण (रंग) के और भीम कुछ मोटी। बिल्ली कब जाती है, कब आती है। यह सब भी राधिका जानती है। वह बिल्ली को दूध देती है। बिल्ली दूध पीती है। बाद में वह धन्यवाद सहित राधिका को देखती है किंतु बिल्ली के बच्चे के समीप राधिका जाती है धीरे-धीरे (बिल्ली) पीछे आती है। राधिका को देखकर बिल्ली के बच्चे भयभीत नहीं होते। दादी राधिका की गतिविधियों को देखकर हँसती है।
(ग)
सा राधिकां वदति राधिके ! अतिथयः कदा
आगच्छन्ति इति न जानीमः । किन्तु यदा ते अत्र
आगच्छन्ति तदा तेषाम् एतादृशी सेवा करणीया । राधिका
पितामह्याः कण्ठं परितः मालाम् इव हस्तौ स्थापयन्ती
पृच्छति – अस्तु, करोमि । किंतु किमर्थम् ? मातामही
वदति – ‘अतिथिदेवो भव’ अर्थात् अतिथिः अस्माकं
देवः अस्ति इति चिन्तयतु । तस्य आदरेण सेवां करोतु ।
राधिका आदिनं मन्त्रम् इव वारं वारं वदति – अतिथिदेवो
भव। अतिथिदेवो भव । अनन्तरं सा तन्वीं मृद्वीं शबलं भीमं
च वात्सल्येन वदति – जानन्ति किम् ? अतिथिदेवो भव ।
भवन्तः अपि वदन्तु – ‘अतिथिदेवो भव’ ।
शब्दार्था: –
यदा- जब ।
तदा – तब |
तेषाम् – उनकी
एतादृश – इस तरह के ।
पितामह्या: – दादी के ।
परितः – चारों ओर |
इव – समान ।
स्थापयन्ती – डालती हुई ।
किमर्थम् – क्यों / किसलिए।
मातामही – नानी |
अस्माकं – हमारे ।
आदिनं – दिन – भर ।
वारं वारं – बार-बार ।
वात्सल्येन – स्नेह से।
सरलार्थ:- वह राधिका से कहती है- राधिका ! अतिथि कब आते हैं। यह नहीं जानते। किंतु जब वे यहाँ आते हैं तब उनकी इस प्रकार सेवा करनी चाहिए। राधिका दादी के गले में चारों ओर माला की भाँति हाथ | डालकर पूछती है – ठीक है, करती हूँ। किंतु किसलिए? नानी बोलती है- अतिथि देवता हैं अर्थात् अतिथि हमारे ‘देव’ हैं इस प्रकार सोचो। उनकी सम्मान सहित सेवा करो। राधिका दिन-भर मंत्र की भाँति बार – बार बोलती है- अतिथिदेवो भव । अतिथिदेवो भव । उसके बाद वह तन्वी, मृद्वी, शबलं और भीम से प्रेमपूर्वक बोलती है- क्या जानते हो? अतिथिदेवो भव । आप सब भी बोलो – ‘ अतिथिदेवो भव’।