NCERT Class 9 Hindi Sanchayan Book Chapter 4 मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय Important Question Answers
Mera Chota Sa Niji Pustakalaya Important Questions – Here are the Mera Chota Sa Niji Pustakalaya Question Answers for CBSE Class 9 Hindi Sanchayan Book Chapter 4. The important questions we have compiled will help the students brush up on their knowledge about the subject.
Students can practice Class 9 Hindi important questions to understand the subject better and improve their performance in the exam. The solutions provided here will also give students an idea about how to write the answers.
सार-आधारित प्रश्न Extract Based Questions
सार–आधारित प्रश्न बहुविकल्पीय किस्म के होते हैं, और छात्रों को पैसेज को ध्यान से पढ़कर प्रत्येक प्रश्न के लिए सही विकल्प का चयन करना चाहिए। (Extract-based questions are of the multiple-choice variety, and students must select the correct option for each question by carefully reading the passage.)
1 –
जुलाई 1989। बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। तीन–तीन जबरदस्त हार्ट–अटैक, एक के बाद एक। एक तो ऐसा कि नब्ज बंद, साँस बंद, धड़कन बंद। डॉक्टरों ने घोषित कर दिया कि अब प्राण नहीं रहे। पर डॉक्टर बोर्जेस ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी थी। उन्होंने नौ सौ वॉल्ट्स के शॉक्स (shocks) दिए। भयानक प्रयोग। लेकिन वे बोले कि यदि यह मृत शरीर मात्र है तो दर्द महसूस ही नहीं होगा, पर यदि कहीं भी जरा भी एक कण प्राण शेष होंगे तो हार्ट रिवाइव (revive) कर सकता है। प्राण तो लौटे, पर इस प्रयोग में साठ प्रतिशत हार्ट सदा के लिए नष्ट हो गया। केवल चालीस प्रतिशत बचा। उसमें भी तीन अवरोध् (blockage) हैं। ओपेन हार्ट ऑपरेशन तो करना ही होगा पर सर्जन हिचक रहे हैं। केवल चालीस प्रतिशत हार्ट है। ऑपरेशन के बाद न रिवाइव हुआ तो? तय हुआ कि अन्य विशेषज्ञों की राय ले ली जाए, तब कुछ दिन बाद ऑपरेशन की सोचेंगे। तब तक घर जाकर बिना हिले–डुले विश्राम करें।
प्रश्न 1 – लेखक को हार्ट–अटैक कब आया था?
(क) जुलाई 1989
(ख) जुलाई 1988
(ग) जुलाई 1982
(घ) जुलाई 1987
उत्तर – (क) जुलाई 1989
प्रश्न 2 – लेखक को एक के बाद एक कितने हार्ट–अटैक आए?
(क) दो
(ख) चार
(ग) तीन
(घ) एक
उत्तर – (ग) तीन
प्रश्न 3 – जब सभी डॉक्टरों ने कह दिया था कि लेखक के प्राण नहीं रहे तो किस डॉक्टर ने हिम्मत नहीं हारी थी?
(क) बर्जेस
(ख) बेनर्जी
(ग) ब्रिजेस
(घ) बोर्जेस
उत्तर – (घ) बोर्जेस
प्रश्न 4 – नौ सौ वॉल्ट्स के शॉक्स के कारण लेखक का कितने प्रतिशत हार्ट सदा के लिए नष्ट हो गया?
(क) साठ प्रतिशत
(ख) चालीस प्रतिशत
(ग) पचास प्रतिशत
(घ) आठ प्रतिशत
उत्तर – (क) साठ प्रतिशत
प्रश्न 5 – सर्जन क्यों हिचक रहे थे?
(क) हार्ट ऑपरेशन करने को
(ख) ओपेन हार्ट ऑपरेशन करने को
(ग) ऑपरेशन करने को
(घ) नौ सौ वॉल्ट्स के शॉक्स लगाने को
उत्तर – (ख) ओपेन हार्ट ऑपरेशन करने को
2 –
बरहाल, ऐसी अर्धमृत्यु की हालत में वापिस घर लाया जाता हूँ। मेरी जिद है कि बेडरूम में नहीं, मुझे अपने किताबों वाले कमरे में ही रखा जाए। वहीं लेटा दिया गया है मुझे। चलना, बोलना, पढ़ना मना। दिन भर पड़े–पड़े दो ही चीजें देखता रहता हूँ, बाईं ओर की खिड़की के सामने रह–रहकर हवा में झूलते सुपारी के पेड़ के झालरदार पत्ते और अंदर कमरे में चारों ओर फर्श से लेकर छत तक ऊँची, किताबों से ठसाठस भरी अलमारियाँ। बचपन में परी कथाओं (fairy tales) में जैसे पढ़ते थे कि राजा के प्राण उसके शरीर में नहीं, तोते में रहते हैं, वैसे ही लगता था कि मेरे प्राण इस शरीर से तो निकल चुके हैं, वे प्राण इन हजारों किताबों में बसे हैं जो पिछले चालीस–पचास बरस में धीरे–धीरे मेरे पास जमा होती गई हैं।
कैसे जमा हुईं, संकलन की शुरुआत कैसे हुई, यह कथा बाद में सुनाऊँगा। पहले तो यह बताना जरूरी है कि किताबें पढ़ने और सहेजने का शौक कैसे जागा। बचपन की बात है। उस समय आर्य समाज का सुधारवादी आंदोलन अपने पूरे जोर पर था। मेरे पिता आर्य समाज रानीमंडी के प्रधान थे और माँ ने स्त्री–शिक्षा के लिए आदर्श कन्या पाठशाला की स्थापना की थी।
प्रश्न 1 – लेखक ने घर आने पर क्या जिद की?
(क) बेडरूम में रहने की
(ख) अपने किताबों वाले कमरे में रहने की
(ग) किताबें पढ़ने की
(घ) आराम करने की
उत्तर – (ख) अपने किताबों वाले कमरे में रहने की
प्रश्न 2 – लेखक को क्या मना किया गया था?
(क) चलना
(ख) पढ़ना
(ग) बोलना
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 3 – दिन भर पड़े–पड़े लेखक क्या चीजें देखता रहता था?
(क) बाईं ओर की खिड़की के सामने रह–रहकर हवा में झूलते सुपारी के पेड़ के झालरदार पत्ते
(ख) अंदर कमरे में चारों ओर फर्श से लेकर छत तक ऊँची, किताबों से ठसाठस भरी अलमारियाँ
(ग) केवल (क)
(घ) (क) और (ख) दोनों
उत्तर – (घ) (क) और (ख) दोनों
प्रश्न 4 – लेखक के अनुसार लेखक के प्राण किसमें बसे थे?
(क) किताबों से ठसाठस भरी अलमारियों में
(ख) चालीस–पचास बरस में धीरे–धीरे जमा हुई हज़ारों किताबों में
(ग) हवा में झूलते सुपारी के पेड़ के झालरदार पत्ते में
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (ख) चालीस–पचास बरस में धीरे–धीरे जमा हुई हज़ारों किताबों में
प्रश्न 5 – लेखक की माँ ने स्त्री–शिक्षा के लिए किस पाठशाला की स्थापना की थी?
(क) कन्या पाठशाला
(ख) आदर्श पाठशाला
(ग) आदर्श कन्या पाठशाला
(घ) कन्या वरिष्ठ पाठशाला
उत्तर – (ग) आदर्श कन्या पाठशाला
3 –
माँ स्कूली पढ़ाई पर जोर देतीं। चिंतित रहती कि लड़का कक्षा की किताबें नहीं पढ़ता। पास कैसे होगा! कहीं खुद साधु बनकर घर से भाग गया तो? पिता कहते–जीवन में यही पढ़ाई काम आएगी, पढ़ने दो। मैं स्कूल नहीं भेजा गया था, शुरू की पढ़ाई के लिए घर पर मास्टर रखे गए थे। पिता नहीं चाहते थे कि नासमझ उम्र में मैं गलत संगति में पड़कर गाली–गलौज सीखूँ, बुरे संस्कार ग्रहण करूँ अतः मेरा नाम लिखाया गया, जब मैं कक्षा दो तक की पढ़ाई घर पर कर चुका था। तीसरे दर्जे में मैं भरती हुआ। उस दिन शाम को पिता उँगली पकड़कर मुझे घुमाने ले गए। लोकनाथ की एक दुकान ताजा अनार का शरबत मिट्टी के कुल्हड़ में पिलाया और सिर पर हाथ रखकर बोले-“वायदा करो कि पाठ्यक्रम की किताबें भी इतने ही ध्यान से पढ़ोगे, माँ की चिंता मिटाओगे।” उनका आशीर्वाद था या मेरा जी–तोड़ परिश्रम कि तीसरे, चैथे में मेरे अच्छे नंबर आए और पाँचवें में तो मैं फर्स्ट आया। माँ ने आँसू भरकर गले लगा लिया, पिता मुसकुराते रहे, कुछ बोले नहीं। चूँकि अंग्रेजी में मेरे नंबर सबसे ज्यादा थे, अतः स्कूल से इनाम में दो अंग्रेजी किताबें मिली थीं। एक में दो छोटे बच्चे घोंसलों की खोज में बागों और कुंजों में भटकते हैं और इस बहाने पक्षियों की जातियों, उनकी बोलियों, उनकी आदतों की जानकारी उन्हें मिलती है। दूसरी किताब थी ‘ट्रस्टी द रग’ जिसमें पानी के जहाजों की कथाएँ थीं–कितने प्रकार के होते हैं, कौन–कौन–सा माल लादकर लाते हैं, कहाँ से लाते हैं, कहाँ ले जाते हैं, नाविकों की जिंदगी कैसी होती है, कैसे–कैसे द्वीप मिलते हैं, कहाँ ह्वेल होती है, कहाँ शार्क होती है।
प्रश्न 1 – लेखक की माँ किस बात पर जोर देतीं थी?
(क) पढ़ाई
(ख) स्कूली पढ़ाई
(ग) पत्रिका पढ़ाई
(घ) अखबार पढ़ाई
उत्तर – (ख) स्कूली पढ़ाई
प्रश्न 2 – लेखक के पिता ने लेखक को शुरू की पढाई के लिए विद्यालय क्यों नहीं भेजा?
(क) पिता नहीं चाहते थे कि नासमझ उम्र में मैं गलत संगति में पड़े
(ख) पिता नहीं चाहते थे कि लेखक गाली–गलौज सीखें
(ग) पिता नहीं चाहते थे कि लेखक बुरे संस्कार ग्रहण करें
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 3 – लेखक को किस कक्षा में विद्यालय में भर्ती किया गया?
(क) कक्षा एक
(ख) कक्षा दो
(ग) कक्षा तीन
(घ) कक्षा चार
उत्तर – (ग) कक्षा तीन
प्रश्न 4 – लेखक ने सबसे अच्छे अंक किस विषय में प्राप्त किए?
(क) हिंदी
(ख) अंग्रेजी
(ग) गणित
(घ) विज्ञान
उत्तर – (ख) अंग्रेजी
प्रश्न 5 – स्कूल से इनाम में लेखक को अंग्रेजी की कितनी किताबें मिली थीं?
(क) दो
(ख) चार
(ग) तीन
(घ) एक
उत्तर – (क) दो
4 –
इलाहाबाद भारत के प्रख्यात शिक्षा–केंद्रों में एक रहा है। ईस्ट इंडिया द्वारा स्थापित पब्लिक लाइब्रेरी से लेकर महामना मदनमोहन मालवीय द्वारा स्थापित भारती भवन तक। विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी तथा अनेक काॅलेजों की लाइब्रेरियाँ तो हैं ही, लगभग हर मुहल्ले में एक अलग लाइब्रेरी। वहाँ हाईकोर्ट है, अतः वकीलों की निजी लाइब्रेरियाँ, अध्यापकों की निजी लाइब्रेरियाँ। अपनी लाइब्रेरी वैसी कभी होगी, यह तो स्वपन में भी नहीं सोच सकता था, पर अपने मुहल्ले में एक लाइब्रेरी थी-‘हरि भवन’। स्कूल से छुटी मिली कि मैं उसमें जाकर जम जाता था। पिता दिवंगत हो चुके थे, लाइब्रेरी का चंदा चुकाने का पैसा नहीं था, अतः वहीं बैठकर किताबें निकलवाकर पढ़ता रहता था। उन दिनों हिंदी में विश्व साहित्य विशेष कर उपन्यासों के खूब अनुवाद हो रहे थे। मुझे उन अनूदित उपन्यासों को पढ़कर बड़ा सुख मिलता था। अपने छोटे–से ‘हरि भवन’ में खूब उपन्यास थे। वहीं परिचय हुआ बंकिमचंद्र चटोपाध्याय की ‘दुर्गेशनंदिनी’, ‘कपाल कुण्डला’ और ‘आनंदमठ’ से टालस्टाय की ‘अन्ना करेनिना’, विक्टर ह्यूगो का ‘पेरिस का कुबड़ा’ (हंचबैक ऑफ नात्रोदाम), गोर्की की ‘मदर’, अलेक्जंडर कुप्रिन का ‘गाड़ीवालों का कटरा’ (यामा द पिट) और सबसे मनोरंजक सर्वा–रीज़ का ‘विचित्र वीर’ (यानी डाॅन क्विक्ज़ोट)। हिंदी के ही माध्यम से सारी दुनिया के कथा–पात्रों से मुलाकात करना कितना आकर्षक था! लाइब्रेरी खुलते ही पहुँच जाता और जब शुक्ल जी लाइब्रेरियन कहते कि बच्चा, अब उठो, पुस्तकालय बंद करना है, तब बड़ी अनिच्छा से उठता। जिस दिन कोई उपन्यास अधूरा छूट जाता, उस दिन मन में कसक होती कि काश, इतने पैसे होते कि सदस्य बनकर किताब इश्यू करा लाता, या काश, इस किताब को खरीद पाता तो घर में रखता, एक बार पढ़ता, दो बार पढ़ता, बार–बार पढ़ता पर जानता था कि यह सपना ही रहेगा, भला कैसे पूरा हो पाएगा!
प्रश्न 1 – लेखक के मोहल्ले में स्थित लाइब्रेरी का क्या नाम था?
(क) हरि नाम भवन
(ख) हरि भवन
(ग) हरि लाइब्रेरी
(घ) भवन हरि
उत्तर – (ख) हरि भवन
प्रश्न 2 – लेखक लाइब्रेरी में बैठकर ही किताबें निकलवाकर क्यों पढ़ता था?
(क) क्योंकि उसे अच्छा लगता था
(ख) क्योंकि उसे किताबे घर ले जाना अच्छा नहीं लगता था
(ग) क्योंकि उसके पास लाइब्रेरी का चंदा चुकाने का पैसा नहीं था
(घ) केवल (क)
उत्तर – (ग) क्योंकि उसके पास लाइब्रेरी का चंदा चुकाने का पैसा नहीं था
प्रश्न 3 – लेखक लाइब्रेरी में क्या पढ़ता था?
(क) कहानियाँ
(ख) उपन्यास
(ग) ग्रन्थ
(घ) लेख
उत्तर – (ख) उपन्यास
प्रश्न 4 – लेखक को सबसे मनोरंजक उपन्यास कौन सा लगा?
(क) विक्टर ह्यूगो का ‘पेरिस का कुबड़ा’
(ख) टालस्टाय की ‘अन्ना करेनिना’
(ग) बंकिमचंद्र चटोपाध्याय की ‘दुर्गेशनंदिनी’
(घ) सर्वा–रीज़ का ‘विचित्र वीर’
उत्तर – (घ) सर्वा–रीज़ का ‘विचित्र वीर’
प्रश्न 5 – शुक्ल जी कौन थे?
(क) लेखक
(ख) लाइब्रेरियन
(ग) अध्यापक
(घ) लेखक के मित्र
उत्तर – (ख) लाइब्रेरियन
5 –
मैंने जीवन की पहली साहित्यिक पुस्तक अपने पैसों से कैसे खरीदी, यह आज तक याद है। उस साल इंटरमीडिएट पास किया था। पुरानी पाठ्यपुस्तकें बेचकर बी.ए. की पाठ्यपुस्तकें लेने एक सेकंड–हैंड बुकशाॅप पर गया। उस बार जाने कैसे पाठ्यपुस्तकें खरीदकर भी दो रुपये बच गए थे। सामने के सिनेमाघर में ‘देवदास’ लगा था। न्यू थिएटर्स वाला। बहुत चर्चा थी उसकी। लेकिन मेरी माँ को सिनेमा देखना बिलकुल नापसंद था। उसी से बच्चे बिगड़ते हैं। लेकिन उसके गाने सिनेमागृह के बाहर बजते थे। उसमें सहगल का एक गाना था-‘दुख वेदिन अब बीतत नाहीं’। उसे अकसर गुनगुनाता रहता था। कभी–कभी गुनगुनाते आँखों में आँसू आ जाते थे जाने क्यों! एक दिन माँ ने सुना। माँ का दिल तो आखिर माँ का दिल! एक दिन बोली-“दुःख के दिन बीत जाएँगे बेटा, दिल इतना छोटा क्यों करता है? धीरज से काम ले!” जब उन्हें मालूम हुआ कि यह तो फिल्म ‘देवदास’ का गाना है, तो सिनेमा की घोर विरोधी माँ ने कहा-“अपना मन क्यों मारता है, जाकर पिक्चर देख आ। पैसे मैं दे दूँगी।” मैंने माँ को बताया कि “किताबें बेचकर दो रुपये मेरे पास बचे हैं।” वे दो रुपये लेकर माँ की सहमति से फ़िल्म देखने गया। पहला शो छूटने में देर थी, पास में अपनी परिचित किताब की दुकान थी। वहीं चक्कर लगाने लगा। सहसा देखा, काउंटर पर एक पुस्तक रखी है-‘देवदास’। लेखक शरत्चंद्र चट्टोपाध्याय। दाम केवल एक रुपया। मैंने पुस्तक उठाकर उलटी–पलटी। तो पुस्तक–विक्रेता बोला-” विद्यार्थी हो। यहीं अपनी पुरानी किताबें बेचते हो। हमारे पुराने ग्राहक हो। तुमसे अपना कमीशन नहीं लूँगा। केवल दस आने में यह किताब दे दूँगा“। मेरा मन पलट गया। कौन देखे डेढ़ रुपये में पिक्चर? दस आने में ‘देवदास’ खरीदी। जल्दी–जल्दी घर लौट आया, और दो रुपये में से बचे एक रुपया छः आना माँ के हाथ में रख दिए।
प्रश्न 1 – लेखक की माँ को क्या पसंद नहीं था?
(क) लेखक का पढ़ना
(ख) लेखक का लिखना
(ग) सिनेमा देखना
(घ) उपन्यास पढ़ना
उत्तर – (ग) सिनेमा देखना
प्रश्न 2 – लेखक की माँ को सिनेमा देखना क्यों नापसंद था?
(क) क्योंकि उन्हें लगता था कि उसी से बच्चे बिगड़ते हैं
(ख) क्योंकि उन्हें लगता था कि उससे पैसे खर्च होते हैं
(ग) क्योंकि उन्हें लगता था कि उससे बच्चे कामचोर बनते हैं
(घ) क्योंकि उन्हें लगता था कि उसी से बच्चे सुधरते हैं
उत्तर – (क) क्योंकि उन्हें लगता था कि उसी से बच्चे बिगड़ते हैं
प्रश्न 3 – किताबें बेचकर लेखक के पास कितने पैसे बचे थे?
(क) तीन रुपये
(ख) चार रुपये
(ग) दो रुपये
(घ) चार रुपये
उत्तर – (ग) दो रुपये
प्रश्न 4 – पुस्तक देवदास के लेखक कौन थे?
(क) शरत्चंद्र उपाध्याय
(ख) शरत्चंद्र अध्याय
(ग) शरत चट्टोपाध्याय
(घ) शरत्चंद्र चट्टोपाध्याय
उत्तर – (घ) शरत्चंद्र चट्टोपाध्याय
प्रश्न 5 – लेखक को पुस्तक कितने में पड़ी?
(क) दस आने में
(ख) बीस आने में
(ग) पाँच आने में
(घ) दो आने में
उत्तर – (क) दस आने में
बहुविकल्पीय प्रश्न और उत्तर (Multiple Choice Questions)
बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs) एक प्रकार का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन है जिसमें एक व्यक्ति को उपलब्ध विकल्पों की सूची में से एक या अधिक सही उत्तर चुनने के लिए कहा जाता है। एक एमसीक्यू कई संभावित उत्तरों के साथ एक प्रश्न प्रस्तुत करता है।
प्रश्न 1 – लेखक को तीन-तीन जबरदस्त हार्ट-अटैक कब आए थे?
(क) जुलाई 1989
(ख) जुलाई 1988
(ग) जून 1989
(घ) जुलाई 1987
उत्तर – (क) जुलाई 1989
प्रश्न 2 – लेखक के बचने की उम्मीद क्यों नहीं थी?
(क) लेखक के डॉक्टर ने उम्मीद छोड़ दी थी
(ख) लेखक की तीन-तीन हार्ट-सर्जरी हुई थी
(ग) लेखक को तीन-तीन जबरदस्त हार्ट-अटैक आए थे
(घ) लेखक के परिवार वाले हार मान गए थे
उत्तर – (ग) लेखक को तीन-तीन जबरदस्त हार्ट-अटैक आए थे
प्रश्न 3 – डॉक्टर बोर्जेस ने लेखक को कितने वॉल्ट्स के शॉक्स (shocks) दिए?
(क) दो सौ वॉल्ट्स
(ख) सात सौ वॉल्ट्स
(ग) आठ सौ वॉल्ट्स
(घ) नौ सौ वॉल्ट्स
उत्तर – (घ) नौ सौ वॉल्ट्स
प्रश्न 4 – नौ सौ वॉल्ट्स शॉक्स देने के प्रयोग में लेखक का कितने प्रतिशत हार्ट सदा के लिए नष्ट हो गया?
(क) साठ प्रतिशत
(ख) आठ प्रतिशत
(ग) सात प्रतिशत
(घ) चालीस प्रतिशत
उत्तर – (क) साठ प्रतिशत
प्रश्न 5 – लेखक को घर के किस कमरे में रखा गया?
(क) बगीचे वाले कमरे में
(ख) बालकनी वाले कमरे में
(ग) किताबों वाले कमरे में
(घ) बच्चों वाले कमरे में
उत्तर – (ग) किताबों वाले कमरे में
प्रश्न 6 – लेखक के पिता किसके प्रधान थे?
(क) आर्य समाज रानीमंडी
(ख) आर्य संगठन रानीमंडी
(ग) आर्य समाज राजामंडी
(घ) आर्य समाज मंडी
उत्तर – (क) आर्य समाज रानीमंडी
प्रश्न 7 – लेखक के पिता ने किसके आह्नान पर सरकारी नौकरी छोड़ दी थी?
(क) बोस जी के
(ख) नेहरू जी के
(ग) गांधी जी के
(घ) तिलक जी के
उत्तर – (ग) गांधी जी के
प्रश्न 8 – लेखक के घर में नियमित कौन सी पत्र-पत्रिकाएँ आती थीं?
(क) ‘आर्यमित्र साप्ताहिक’, ‘वेदोदम’
(ख) ‘सरस्वती’, ‘गृहिणी’
(ग) ‘बालसखा’ ‘चमचम’
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 9 – लेखक की प्रिय पुस्तक कौन सी थी?
(क) स्वामी विवेकानंद की जीवनी
(ख) स्वामी दयानंद की जीवनी
(ग) स्वामी सरस्वती की जीवनी
(घ) स्वामी विश्वनाथ की जीवनी
उत्तर – (ख) स्वामी दयानंद की जीवनी
प्रश्न 10 – स्वामी दयानंद की जीवनी की किन रोमांचक घटनाओं ने लेखक के जीवन को प्रभावित किया?
(क) चूहे को भगवान का भोग खाते देखकर मान लेना कि प्रतिमाएँ भगवान नहीं होतीं, घर छोड़कर भाग जाना
(ख) तमाम तीर्थों, जंगलों, गुफाओं, हिमशिखरों पर साधुओं के बीच घूमना और हर जगह इसकी तलाश करना कि भगवान क्या है? सत्य क्या है?
(ग) जो भी समाज-विरोधी, मनुष्य-विरोधी मूल्य हैं, रूढ़ियाँ हैं, उनका खंडन करना और अंत में अपने से हारे को क्षमा कर उसे सहारा देना
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 11 – लोकनाथ की एक दुकान ताजा अनार का शरबत मिट्टी के कुल्हड़ में पिलाते हुए और सिर पर हाथ रखकर लेखक के पिता लेखक से क्या बोले?
(क) वायदा करो कि पाठ्यक्रम की किताबें भी इतने ही ध्यान से पढ़ोगे, माँ की चिंता मिटाओगे
(ख) वायदा करो कि पाठ्यक्रम की किताबें भी इतने ही ध्यान से पढ़ोगे
(ग) वायदा करो कि माँ की चिंता मिटाओगे
(घ) वायदा करो कि गलत संगति से दूर रहोगे
उत्तर – (क) वायदा करो कि पाठ्यक्रम की किताबें भी इतने ही ध्यान से पढ़ोगे, माँ की चिंता मिटाओगे
प्रश्न 12 – ‘ट्रस्टी द रग’ नामक किताब में पानी के जहाजों की कैसी कथाएँ थीं?
(क) कितने प्रकार के होते हैं, कौन-कौन-सा माल लादकर लाते हैं, कहाँ से लाते हैं, कहाँ ले जाते हैं
(ख) नाविकों की जिंदगी कैसी होती है, कैसे-कैसे द्वीप मिलते हैं
(ग) कहाँ ह्वेल होती है, कहाँ शार्क होती है
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 13 – जिस दिन कोई उपन्यास अधूरा छूट जाता, उस दिन लेखक के मन में क्या कसक होती?
(क) कि काश, इतने पैसे होते कि सदस्य बनकर किताब इश्यू करा लाता
(ख) कि काश, इस किताब को खरीद पाता तो घर में रखता
(ग) कि काश, किताब इश्यू करा कर एक बार पढ़ता, दो बार पढ़ता, बार-बार पढ़ता
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 14 – पिता के देहावसान के बाद लेखक को क्या कष्ट झेलने पड़े?
(क) उसे विद्यालय छोड़ना पड़ा
(ख) लेखक को छोटी उम्र में काम करना पड़ा
(ग) फीस जुटाना तक मुश्किल था, शौक की किताबें खरीदना तो संभव ही नहीं था
(घ) अपनी माँ का ध्यान अकेले रखना पड़ा
उत्तर – (ग) फीस जुटाना तक मुश्किल था, शौक की किताबें खरीदना तो संभव ही नहीं था
प्रश्न 15 – लेखक की अपने पैसों से खरीदी, अपनी निजी लाइब्रेरी की पहली किताब कौन सी थी?
(क) देवदास
(ख) फूल और कांटे
(ग) पेरिस का कुबड़ा
(घ) गाड़ीवालों का कटरा’ (यामा द पिट)
उत्तर – (क) देवदास
मेरा छोटा–सा निजी पुस्तकालय Short Question Answers – (25 से 30 शब्दों में)
प्रश्न 1 – लेखक के बचने की उम्मीद क्यों नहीं थी?
उत्तर – लेखक को तीन–तीन ज़बरदस्त हार्ट–अटैक आए थे और वो भी एक के बाद एक। उनमें से एक तो इतना खतरनाक था कि उस समय लेखक की नब्ज बंद, साँस बंद और यहाँ तक कि धड़कन भी बंद पड़ गई थी।
प्रश्न 2 – लेखक के प्राण किस प्रकार बचाए गए?
उत्तर – लेखक को तीन–तीन ज़बरदस्त हार्ट–अटैक आए थे। उनमें से एक तो इतना खतरनाक था कि उस समय लेखक की नब्ज बंद, साँस बंद और यहाँ तक कि धड़कन भी बंद पड़ गई थी। उस समय डॉक्टरों ने यह घोषित कर दिया था कि अब लेखक के प्राण नहीं रहे। उन सभी डॉक्टरों में से एक डॉक्टर बोर्जेस थे जिन्होंने फिर भी हिम्मत नहीं हारी थी। उन्होंने लेखक को नौ सौ वॉल्ट्स के शॉक्स (shocks) दिए। यह एक बहुत ही भयानक प्रयोग था। लेकिन डॉक्टर बोर्जेस बोले कि यदि यह केवल लेखक का मृत शरीर ही है तो उन्हें कोई दर्द महसूस ही नहीं होगा, पर यदि लेखक के शरीर में कहीं पर भी जरा सा एक कण प्राण शेष हो तो हार्ट रिवाइव (revive) कर सकता है। उनका प्रयोग सफल रहा। लेखक के प्राण तो लौटे, पर इस प्रयोग में लेखक का साठ प्रतिशत हार्ट सदा के लिए नष्ट हो गया। अब लेखक का केवल चालीस प्रतिशत हार्ट ही बचा था जो काम कर रहा था।
प्रश्न 3 – सर्जन को क्या डर था?
उत्तर – लेखक के चालीस प्रतिशत काम करने वाले हार्ट में भी तीन रुकावटें थी। जिस कारण लेखक का ओपेन हार्ट ऑपरेशन तो करना ही होगा पर सर्जन हिचक रहे हैं। क्योंकि लेखक का केवल चालीस प्रतिशत हार्ट ही काम कर रहा था। सर्जन को डर था कि अगर ऑपरेशन कर भी दिया तो हो सकता है कि ऑपरेशन के बाद न हार्ट रिवाइव ही न हो। सभी ने तय किया कि हार्ट के बारे में अच्छी जानकारी रखने वाले अन्य विशेषज्ञों की राय ले ली जाए, उनकी राय लेने के बाद ही ऑपरेशन की सोचेंगे। तब तक लेखक को घर जाकर बिना हिले–डुले आराम करने की सलाह दी गई।
प्रश्न 4 – लेखक ने घर आ कर क्या जिद की और क्यों?
उत्तर – अर्धमृत्यु की अधमरी सी हालत में लेखक को वापिस घर लाया गया था। घर आने पर लेखक ने जिद की कि उसे बेडरूम में नहीं बल्कि उसके किताबों वाले कमरे में ही रखा जाए। लेखक की जिद मानते हुए लेखक को वहीं लेटा दिया गया। लेखक जैसे बचपन में पढ़ी हुई परी कथाओं में पढ़ता था कि राजा के प्राण उसके शरीर में नहीं, तोते में रहते हैं, वैसे ही लेखक को लगता था कि लेखक के प्राण लेखक के शरीर से तो निकल चुके हैं, परन्तु वे प्राण लेखक के किताबों के उस कमरे की हजारों किताबों में बसे हैं जो पिछले चालीस–पचास साल में धीरे–धीरे लेखक के पास जमा होती गई थी।
प्रश्न 5 – कमरे में पड़े–पड़े लेखक क्या देखता रहता था?
उत्तर – लेखक का कहीं भी चलना, किसी से भी बात करना और यहाँ तक की पढ़ना भी बंद था। सब कुछ मना होने पर लेखक दिन भर कमरे में पड़े–पड़े दो ही चीजें देखता रहता था, बाईं ओर की खिड़की के सामने रुक–रुककर हवा में झूलते सुपारी के पेड़ के झालरदार पत्ते और अंदर कमरे में चारों ओर फर्श से लेकर छत तक ऊँची, किताबों से ठसाठस भरी अलमारियाँ।
प्रश्न 6 – लेखक की प्रिय पुस्तक कौन सी थी और उसकी कौन सी घटनाएँ लेखक के बालमन को बहुत रोमांचित करती थी?
उत्तर – लेखक की प्रिय पुस्तक थी स्वामी दयानंद की एक जीवनी, जो बहुत ही मनोरंजक शैली में लिखी हुई थी, अनेक चित्रों से सज्जी हुई। वे उस समय के दिखावों और ढोंगों के विरुद्ध ऐसा अद्भुत साहस दिखाने वाले अद्भुत व्यक्तित्व थे जिन्हें दबाया न जा सकता था। कितनी ही अद्भुत घटनाएँ थीं उनके जीवन की जो लेखक को बहुत प्रभावित करती थीं। उन घटनाओं में मुख्य थी – चूहे को भगवान का भोग खाते देखकर यह मान लेना कि मूर्तियां भगवान नहीं होतीं, घर छोड़कर भाग जाना, सभी तीर्थों, जंगलों, गुफाओं, हिमशिखरों पर साधुओं के बीच घूमना और हर जगह इसकी तलाश करना कि भगवान क्या है? सत्य क्या है? जो भी समाज–विरोधी, मनुष्य–विरोधी मूल्य हैं, प्रथाएँ हैं, उनका खंडन करना और अंत में अपने से हारे हुए सभी को माफ़ कर उसे सहारा देना। यह सब घटनाएँ लेखक के बालमन को बहुत रोमांचित करती थी।
प्रश्न 7 – लेखक की माँ लेखक को स्कूली पढ़ाई करने पर जोर दिया करती थी क्यों?
उत्तर – लेखक की माँ लेखक को स्कूली पढ़ाई करने पर जोर इसलिए देती थी क्योंकि लेखक की माँ को यह चिंतित लगी रहती थी कि उनका लड़का हमेशा पत्र–पत्रिकाओं को पढ़ता रहता है, कक्षा की किताबें कभी नहीं पढ़ता। कक्षा की किताबें नहीं पढ़ेगा तो कक्षा में पास कैसे होगा! लेखक स्वामी दयानन्द की जीवनी पढ़ा करता था जिस कारण लेखक की माँ को यह भी डर था कि लेखक कहीं खुद साधु बनकर घर से भाग न जाए।
प्रश्न 8 – लेखक के पिता ने लेखक को स्कूल क्यों नहीं भेजा था?
उत्तर – लेखक को स्कूल नहीं भेजा गया था, लेखक की शुरू की पढ़ाई के लिए लेखक के घर पर मास्टर रखे गए थे। लेखक की पिता नहीं चाहते थे कि छोटी सी उम्र में जब किसी चीज की समझ नहीं होती उस उम्र में लेखक किसी गलत संगति में पड़कर गाली–गलौज न सीख ले, बुरे संस्कार न ग्रहण कर ले। यही कारण था कि जब लेखक कक्षा दो तक की पढ़ाई घर पर ही पूरी कर चुका था तब जाके स्कूल में लेखक का नाम लिखाया गया। और लेखक तीसरी कक्षा में स्कूल में भरती हुआ।
प्रश्न 9 – लेखक के पिता ने लेखक से क्या वादा लिया?
उत्तर – जिस दिन लेखक को स्कूल में भरती किया गया उस दिन शाम को लेखक के पिता लेखक की उँगली पकड़कर लेखक को घुमाने ले गए। लोकनाथ की एक दुकान पर लेखक को ताजा अनार का शरबत मिट्टी के बर्तन में पिलाया और लेखक के सिर पर हाथ रखकर बोले कि लेखक उनसे वायदा करे कि लेखक अपने पाठ्यक्रम की किताबें भी इतने ही ध्यान से पढ़ेगा जितने ध्यान से लेखक पत्रिकाओं को पढ़ता है और लेखक अपनी माँ की चिंता को भी मिटाएगा।
प्रश्न 10 – लेखक को इनाम में मिली किताबें किस विषय पर थी?
उत्तर – लेखक को स्कूल से इनाम में दो अंग्रेजी किताबें मिली थीं। उनमें से एक किताब में दो छोटे बच्चे घोंसलों की खोज में बागों और घने पेड़ो के बीच में भटकते हैं और इस बहाने उन बच्चों को पक्षियों की जातियों, उनकी बोलियों, उनकी आदतों की जानकारी मिलती है। दूसरी किताब थी ‘ट्रस्टी द रग’ जिसमें पानी के जहाज़ों की कथाएँ थीं। उसमें बताया गया था कि जहाज़ कितने प्रकार के होते हैं, कौन–कौन–सा माल लादकर लाते हैं, कहाँ से लाते हैं, कहाँ ले जाते हैं, वाले जहाज़ों पर रहने नाविकों की जिंदगी कैसी होती है, उन्हें कैसे–कैसे द्वीप मिलते हैं, समुद्र में कहाँ ह्वेल मछली होती है और कहाँ शार्क होती है। स्कूल से इनाम में मिली उन अंग्रेजी की दो किताबों ने लेखक के लिए एक नयी दुनिया का द्वार लिए खोल दिया था। लेखक के पास अब उस दुनिया में पक्षियों से भरा आकाश था और रहस्यों से भरा समुद्र था।
प्रश्न 11 – पिता की मृत्यु के बाद लेखक के आर्थिक संकट का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर – लेखक के पिता की मृत्यु के बाद तो लेखक के परिवार पर रुपये–पैसे से सम्बंधित इतना अधिक संकट बढ़ गया था कि लेखक को फीस जुटाना तक मुश्किल हो गया था। अपने शौक की किताबें खरीदना तो लेखक के लिए उस समय संभव ही नहीं था। एक ट्रस्ट की ओर से बेसहारा छात्रों को पाठ्यपुस्तकें खरीदने के लिए सत्र के आरंभ में कुछ रुपये मिलते थे। लेखक उन से केवल ‘सेकंड–हैंड’ प्रमुख पाठ्यपुस्तकें खरीदता था, बाकी अपने सहपाठियों से लेकर पढ़ता और नोट्स बना लेता था। उन दिनों परीक्षा के बाद छात्र अपनी पुरानी पाठ्यपुस्तकें आधे दाम में बेच देते और उन्हीं में से आने वाले नए गरीब छात्र अपनी जरुरत की पाठ्यपुस्तकों को खरीद लेते थे। उन दिनों इसी तरह काम चलता था।
प्रश्न 12 – लेखक क्यों मानता था कि उसके द्वारा इकठ्ठी की गई पुस्तकों में उसकी जान बसती है जैसे तोते में राजा के प्राण बसते थे?
उत्तर – जब लेखक का ऑपरेशन सफल हो गया था तब मराठी के एक बड़े कवि विंदा करंदीकर लेखक से उस दिन मिलने आये थे। उन्होंने लेखक से कहा था कि भारती, ये सैकड़ों महापुरुष जो पुस्तक–रूप में तुम्हारे चारों ओर उपस्थित हैं, इन्हीं के आशीर्वाद से तुम बचे हो। इन्होंने तुम्हें दोबारा जीवन दिया है। लेखक ने मन–ही–मन सभी को प्रणाम किया–विंदा को भी, इन महापुरुषों को भी। यहाँ लेखक भी मानता था कि उसके द्वारा इकठ्ठी की गई पुस्तकों में उसकी जान बसती है जैसे तोते में राजा के प्राण बसते थे।
मेरा छोटा–सा निजी पुस्तकालय Long Question Answers (60 से 70 शब्दों में)
प्रश्न 1 – लेखक को किताबें पढ़ने और उन्हें सम्भाल कर रखने का शौक कैसे जागा?
उत्तर – लेखक के घर में हर–रोज पत्र–पत्रिकाएँ आती रहती थीं। इन पत्र–पत्रिकाओं में ‘आर्यमित्र साप्ताहिक’, ‘वेदोदम’, ‘सरस्वती’, ‘गृहिणी’ थी और दो बाल पत्रिकाएँ खास तौर पर लेखक के लिए आती थी। जिनका नाम था-‘बालसखा’ और ‘चमचम’। उन दो पत्रिकाओं में परियों, राजकुमारों, दानवों और सुंदरी राजकन्याओं की कहानियाँ और रेखाचित्र होते थे। लेखक को उन दो पत्रिकाओं को पढ़ने की आदत लग गई थी। लेखक उन पत्रिकाओं को हर समय पढ़ता रहता था। यहाँ तक की जब लेखक खाना खाता था तब भी थाली के पास पत्रिकाएँ रखकर पढ़ता रहता था। अपनी दोनों पत्रिकाओं के अलावा लेखक दूसरी पत्रिकाओं को भी पढ़ता था। लेखक ‘सरस्वती’ और ‘आर्यमित्र’ नामक पत्रिकाओं को पढ़ने की कोशिश करता था। लेखक के घर में बहुत सी पुस्तकें भी थीं। उपनिषदें और उनके हिंदी अनुवाद, ‘सत्यार्थ प्रकाश’ नमक हिंदी लेखक की भी बहुत सी पुस्तकें लेखक के घर पर थी। ‘सत्यार्थ प्रकाश’ के खंडन–मंडन वाले अध्याय लेखक को पूरी तरह समझ तो नहीं आते थे, पर उन्हें पढ़ने में लेखक को मजा आता था। लेखक की प्रिय पुस्तक थी स्वामी दयानंद की एक जीवनी, जो बहुत ही मनोरंजक शैली में लिखी हुई थी, अनेक चित्रों से सज्जी हुई। लेखक की कठिन मेहनत से तीसरी और चौथी कक्षा में लेखक के अच्छे नंबर आए और पाँचवीं कक्षा में तो लेखक प्रथम आया। लेखक को अंग्रेजी में सबसे ज्यादा नंबर मिले थे, अतः इसलिए लेखक को स्कूल से इनाम में दो अंग्रेजी किताबें मिली थीं। स्कूल से इनाम में मिली उन अंग्रेजी की दो किताबों ने लेखक के लिए एक नयी दुनिया का द्वार लिए खोल दिया था। लेखक के पिता ने उनकी अलमारी के एक खाने से अपनी चीजें हटाकर जगह बनाई थी और लेखक की वे दोनों किताबें उस खाने में रखकर उन्होंने लेखक से कहा था कि आज से यह खाना तुम्हारी अपनी किताबों का है। अब यह तुम्हारी अपनी लाइब्रेरी है। यहीं से लेखक की लाइब्रेरी शुरू हुई थी जो आज बढ़ते–बढ़ते एक बहुत बड़े कमरे में बदल गई थी।
प्रश्न 2 – लेखक को किताबें पढ़ने का शौक तो था यह मान लेते हैं पर किताबें इकट्ठी करने का पागलपन क्यों सवार हुआ?
उत्तर – इलाहाबाद में विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी तथा अनेक काॅलेजों की लाइब्रेरियाँ तो हैं ही, इसके साथ ही इलाहाबाद के लगभग हर मुहल्ले में एक अलग लाइब्रेरी है। इलाहाबाद में हाईकोर्ट है, अतः वकीलों की अपनी अलग से लाइब्रेरियाँ हैं, अध्यापकों की अपनी अलग से लाइब्रेरियाँ हैं। उन सभी लाइब्रेरियों को देख कर लेखक भी सोचा करता था कि क्या उसकी भी कभी वैसी लाइब्रेरी होगी?, यह सब लेखक सपने में भी नहीं सोच सकता था, पर लेखक के मुहल्ले में एक लाइब्रेरी थी जिस्म नाम ‘हरि भवन’ था। लेखक की जैसे ही स्कूल से छुटी होती थी कि लेखक लाइब्रेरी में चला जाता था। लेखक कहता है कि इस समय तक लेखक के पिता स्वर्गीय हो चुके थे, इसलिए लेखक के पास लाइब्रेरी का चंदा चुकाने के लिए भी पैसा नहीं था, इसी कारण लेखक वहीं लाइब्रेरी में बैठकर किताबें निकलवाकर पढ़ता रहता था। जैसे ही लाइब्रेरी खुलती थी लेखक लाइब्रेरी पहुँच जाता था और जब शुक्ल जी जो उस लाइब्रेरी के लाइब्रेरियन थे वे लेखक से कहते कि बच्चा, अब उठो, पुस्तकालय बंद करना है, तब लेखक बिना इच्छा के ही वहां से उठता था। जब कभी किसी दिन लेखक से कोई उपन्यास अधूरा छूट जाता था, तो उस दिन लेखक के मन में एक तरह का रुक–रुक कर दर्द होता था और वह सोचता था कि काश, उसके पास इतने पैसे होते कि वह लाइब्रेरी का सदस्य बनकर किताब को इश्यू करा लाता, या काश, वह इस किताब को खरीद पाता तो घर में रखता, एक बार पढ़ता, दो बार पढ़ता, बार–बार पढ़ता। किताबों के प्रति इसी प्यार से लेखक पर किताबें इकट्ठी करने का पागलपन सवार हुआ।
प्रश्न 3 – रुपये–पैसे की तंगी होने के बाद भी लेखक ने अपने जीवन की पहली साहित्यिक पुस्तक अपने पैसों से कैसे खरीदी?
उत्तर – अपनी माध्यमिक की परीक्षा को पास करके लेखक पुरानी पाठ्यपुस्तकें बेचकर बी.ए. की पाठ्यपुस्तकें लेने एक सेकंड–हैंड बुकशाॅप पर गया। इस बार न जाने कैसे सारी पाठ्यपुस्तकें खरीदकर भी दो रुपये बच गए थे। लेखक ने देखा की सामने के सिनेमाघर में ‘देवदास’ लगा था। उसमें सहगल का एक गाना था-‘दुख वेदिन अब बीतत नाहीं’। इस गाने को लेखक अकसर गुनगुनाता रहता था। एक दिन इस गाने को जब लेखक गुनगुना रहा था और उसकी आंखों से आसूँ आ गए थे तो लेखक की माँ ने लेखक को देख लिया था। सिनेमा की घोर विरोधी माँ ने लेखक से कहा कि अपना मन क्यों मारता है, जाकर पिक्चर देख आ। पैसे मैं दे दूँगी। पहला शो छूटने में अभी देर थी, पास में लेखक की परिचित किताब की दुकान थी। लेखक वहीं उस दूकान के आस–पास चक्कर लगाने लगा। अचानक लेखक ने देखा कि काउंटर पर एक पुस्तक रखी है-‘देवदास’। उस किताब का मूल्य केवल एक रुपया था। लेखक ने पुस्तक उठाकर उलटी–पलटी। तो पुस्तक–विक्रेता को पहचानते हुए बोला कि लेखक तो एक विद्यार्थी है। वह केवल दस आने में वह किताब लेखक को दे देदा। यह सुनकर लेखक का मन भी पलट गया। लेखक ने सोचा कि कौन डेढ़ रुपये में पिक्चर देख कर डेढ़ रुपये खराब करेगा? लेखक ने दस आने में ‘देवदास’ किताब खरीदी और जल्दी–जल्दी घर लौट आया, और दो रुपये में से बचे एक रुपया छः आना अपनी माँ के हाथ में रख दिए। उस किताब को देखकर लेखक की माँ के आँखों में आँसू आ गए। लेखक नहीं जानता कि वह आँसू खुशी के थे या दुख के थे। वह लेखक के अपने पैसों से खरीदी लेखक की अपनी निजी लाइब्रेरी की पहली किताब थी।
प्रश्न 4 – लेखक ने अपने अंतिम समय में भी लाइब्रेरी में ही रहने का निश्चय क्यों किया था?
उत्तर – जब लेखक अपनी इकट्ठी की गई पुस्तकों पर नज़र डालता है, जिसमें हिंदी–अंग्रेजी के उपन्यास, नाटक, कथा–संकलन, जीवनियाँ, संस्मरण, इतिहास, कला, पुरातत्त्व, राजनीति की हजारों से अधिक पुस्तकें हैं, तब लेखक सोचता हुआ याद करता है कि कितनी कठिनाई से उसने अपनी वह पहली पुस्तक की खरीदारी की थी। रेनर मारिया रिल्के, स्टीफेन ज़्विंग, मोपाँसा, चेखव, टालस्टाय, दास्तोवस्की, मायकोवस्की, सोल्जेनिस्टिन, स्टीफेन स्पेण्डर, आडेन एज़रा पाउंड, यूजीन ओ नील, ज्याँ पाल सात्र, ऑलबेयर कामू, आयोनेस्को के साथ पिकासो, ब्रूगेल, रेम्ब्राँ, हेब्बर, हुसेन तथा हिंदी में कबीर, तुलसी, सूर, रसखान, जायसी, प्रेमचंद, पंत, निराला, महादेवी और जाने कितने लेखकों, चिंतकों की इन कृतियों के बीच अपने को लेखक कितना भरा–भरा महसूस करता है। लेखक अपने द्वारा इकट्ठी की गई इन सभी लेखकों की पुस्तकों के बीच अपने आपको कभी भी अकेला महसूस नहीं करता तभी लेखक ने अपने अंतिम समय में भी लाइब्रेरी में ही रहने का निश्चय किया था।
मेरा छोटा-सा निजी पुस्तकालय Extra Question Answers
प्रश्न 1 – लेखक का ऑपरेशन करने से सर्जन क्यों हिचक रहे थे?
उत्तर – लेखक को तीन–तीन ज़बरदस्त हार्ट–अटैक आए थे और वो भी एक के बाद एक। उनमें से एक तो इतना खतरनाक था कि उस समय लेखक की नब्ज बंद, साँस बंद और यहाँ तक कि धड़कन भी बंद पड़ गई थी। उस समय डॉक्टरों ने यह घोषित कर दिया था कि अब लेखक के प्राण नहीं रहे। उन सभी डॉक्टरों में से एक डॉक्टर बोर्जेस थे जिन्होंने फिर भी हिम्मत नहीं हारी थी। उन्होंने लेखक को नौ सौ वॉल्ट्स के शॉक्स दिए। यह एक बहुत ही भयानक प्रयोग था। उनका प्रयोग सफल रहा। लेखक के प्राण तो लौटे, पर इस प्रयोग में लेखक का साठ प्रतिशत हार्ट सदा के लिए नष्ट हो गया। अब लेखक का केवल चालीस प्रतिशत हार्ट ही बचा था जो काम कर रहा था। उस चालीस प्रतिशत काम करने वाले हार्ट में भी तीन रुकावटें थी। जिस कारण लेखक का ओपेन हार्ट ऑपरेशन तो करना ही होगा पर सर्जन हिचक रहे हैं। क्योंकि लेखक का केवल चालीस प्रतिशत हार्ट ही काम कर रहा था। सर्जन को डर था कि अगर ऑपरेशन कर भी दिया तो हो सकता है कि ऑपरेशन के बाद न हार्ट रिवाइव ही न हो।
प्रश्न 2 – ‘किताबों वाले कमरे’ में रहने के पीछे लेखक के मन में क्या भावना थी?
उत्तर – लेखक ने बहुत–सी किताबें जमा कर रखी थीं। किताबें बचपन से लेखक की सुख–दुख की साथी थीं। दुख के समय में किताबें ही उन्हें हिम्मत देती हुई प्रतीत होती थीं। उनके मध्य लेखक स्वयं को भरा–भरा महसूस करता था। उनके प्राण इन किताबों में बसे हुए थे। अपनी किताबों से आत्मीय संबंध के कारण ही वे उनके साथ रहना चाहते थे।
प्रश्न 3 – लेखक के घर कौन–कौन–सी पत्रिकाएँ आती थीं?
उत्तर – लेखक के घर में हर–रोज पत्र–पत्रिकाएँ आती रहती थीं। इन पत्र–पत्रिकाओं में ‘आर्यमित्र साप्ताहिक’, ‘वेदोदम’, ‘सरस्वती’, ‘गृहिणी’ थी और दो बाल पत्रिकाएँ खास तौर पर लेखक के लिए आती थी। जिनका नाम था-‘बालसखा’ और ‘चमचम’।
प्रश्न 4 – लेखक को किताबें पढ़ने और सहेजने का शौक कैसे लगा?
उत्तर – लेखक के पिता नियमित रुप से पत्र–पत्रिकाएँ मँगाते थे। लेखक के लिए खासतौर पर दो बाल पत्रिकाएँ ‘बालसखा’ और ‘चमचम’ आती थीं। इनमें राजकुमारों, दानवों, परियों आदि की कहानियाँ और रेखा–चित्र होते थे। इससे लेखक को पत्रिकाएँ पढ़ने का शौक लग गया। जब वह पाँचवीं कक्षा में प्रथम आया, तो उसे इनाम स्वरूप दो अंग्रेज़ी की पुस्तकें प्राप्त हुईं। लेखक के पिता ने उनकी अलमारी के एक खाने से अपनी चीजें हटाकर जगह बनाई थी और लेखक की वे दोनों किताबें उस खाने में रखकर उन्होंने लेखक से कहा था कि आज से यह खाना तुम्हारी अपनी किताबों का है। अब यह तुम्हारी अपनी लाइब्रेरी है। लेखक कहता है कि यहीं से लेखक की लाइब्रेरी शुरू हुई थी जो आज बढ़ते–बढ़ते एक बहुत बड़े कमरे में बदल गई थी। पिताजी ने उन किताबों को सहेजकर रखने की प्रेरणा दी। यहाँ से लेखक का निजी पुस्तकालय बनना आरंभ हुआ।
प्रश्न 5 – माँ लेखक की स्कूली पढ़ाई को लेकर क्यों चिंतित रहती थी?
उत्तर – लेखक की माँ लेखक को स्कूली पढ़ाई करने पर जोर दिया करती थी। लेखक की माँ लेखक को स्कूली पढ़ाई करने पर जोर इसलिए देती थी क्योंकि लेखक की माँ को यह चिंतित लगी रहतीं थी कि उनका लड़का हमेशा पत्र–पत्रिकाओं को पढ़ता रहता है, कक्षा की किताबें कभी नहीं पढ़ता। कक्षा की किताबें नहीं पढ़ेगा तो कक्षा में पास कैसे होगा! लेखक स्वामी दयानन्द की जीवनी पढ़ा करता था जिस कारण लेखक की माँ को यह भी डर था कि लेखक कहीं खुद साधु बनकर घर से भाग न जाए।
प्रश्न 6 – स्कूल से इनाम में मिली अंग्रेज़ी की दोनों पुस्तकों ने किस प्रकार लेखक के लिए नयी दुनिया के द्वार खोल दिए?
उत्तर – लेखक पाँचवीं कक्षा में प्रथम आया था। उसे स्कूल से इनाम में दो अंग्रेज़ी की किताबें मिली थीं। दोनों ज्ञानवर्धक पुस्तकें थीं। उनमें से एक किताब में दो छोटे बच्चे घोंसलों की खोज में बागों और घने पेड़ों के बीच में भटकते हैं और इस बहाने उन बच्चों को पक्षियों की जातियों, उनकी बोलियों, उनकी आदतों की जानकारी मिलती है। दूसरी किताब थी ‘ट्रस्टी द रग’ जिसमें पानी के जहाजों की कथाएँ थीं। उसमें बताया गया था कि जहाज कितने प्रकार के होते हैं, कौन–कौन–सा माल लादकर लाते हैं, कहाँ से लाते हैं, कहाँ ले जाते हैं, वाले जहाजों पर रहने नाविकों की जिंदगी कैसी होती है, उन्हें कैसे–कैसे द्वीप मिलते हैं, समुद्र में कहाँ ह्वेल मछली होती है और कहाँ शार्क होती है। इन अंग्रेजी की दो किताबों ने लेखक के लिए एक नयी दुनिया का द्वार लिए खोल दिया था। लेखक के पास अब उस दुनिया में पक्षियों से भरा आकाश था और रहस्यों से भरा समुद्र था।
प्रश्न 7 -‘आज से यह खाना तुम्हारी अपनी किताबों का। यह तुम्हारी लाइब्रेरी है’ − पिता के इस कथन से लेखक को क्या प्रेरणा मिली?
उत्तर – पिताजी के इस कथन ने लेखक को पुस्तकें जमा करने की प्रेरणा दी तथा किताबों के प्रति उसका लगाव बढ़ाया। अभी तक लेखक मनोरंजन के लिए किताबें पढ़ता था परन्तु पिताजी के इस कथन ने उसके ज्ञान प्राप्ति के मार्ग को बढ़ावा दिया। आगे चलकर उसने अनगिनत पुस्तकें जमा करके अपना स्वयं का पुस्तकालय बना डाला। अब उसके पास ज्ञान का अतुलनीय भंडार था।
प्रश्न 8 – लेखक द्वारा पहली पुस्तक खरीदने की घटना का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर – लेखक आर्थिक तंगी के कारण पुरानी किताबें बेचकर नई किताबें लेकर पड़ता था। इंटरमीडिएट पास करने पर जब उसने पुरानी किताबें बेचकर बी.ए. की सैकंड–हैंड बुकशॉप से किताबें खरीदीं, तो उसके पास दो रुपये बच गए। उन दिनों देवदास फिल्म लगी हुई थी। उसे देखने का लेखक का बहुत मन था। माँ को फिल्में देखना पसंद नहीं था। अतः लेखक वह फिल्म देखने नहीं गया। लेखक इस फिल्म के गाने को अकसर गुनगुनाता रहता था। एक दिन माँ ने लेखक को वह गाना गुनगुनाते सुना। पुत्र की पीड़ा ने उन्हें व्याकुल कर दिया। माँ बेटे की इच्छा भाँप गई और उन्होंने लेखक को ‘देवदास’ फिल्म देखने की अनुमति दे दी। माँ की अनुमति मिलने पर लेखक फिल्म देखने चल पड़ा। पहला शो छूटने में अभी देर थी, पास में लेखक की परिचित किताब की दुकान थी। लेखक वहीं उस दुकान के आस–पास चक्कर लगाने लगा। अचानक लेखक ने देखा कि काउंटर पर एक पुस्तक रखी है-‘देवदास’। जिसके लेखक शरत्चंद्र चट्टोपाध्याय हैं। उस किताब का मूल्य केवल एक रुपया था। लेखक ने पुस्तक उठाकर उलटी–पलटी। तो पुस्तक–विक्रेता को पहचानते हुए बोला कि लेखक तो एक विद्यार्थी है। लेखक उसी दुकान पर अपनी पुरानी किताबें बेचता है। लेखक उसका पुराना ग्राहक है। वह दुकानदार लेखक से बोले कि वह लेखक से कोई कमीशन नहीं लेगा। वह केवल दस आने में वह किताब लेखक को दे देदा। यह सुनकर लेखक का मन भी पलट गया। लेखक ने सोचा कि कौन डेढ़ रुपये में पिक्चर देख कर डेढ़ रुपये खराब करेगा? लेखक ने दस आने में ‘देवदास’ किताब खरीदी और जल्दी–जल्दी घर लौट आया। वह लेखक के अपने पैसों से खरीदी लेखक की अपनी निजी लाइब्रेरी की पहली किताब थी। इस प्रकार लेखक ने अपनी पहली पुस्तक खरीदी।
प्रश्न 9 – ‘इन कृतियों के बीच अपने को कितना भरा–भरा महसूस करता हूँ’ − का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – किताबें लेखक के सुख–दुख की साथी थीं। कई बार दुख के क्षणों में इन किताबों ने लेखक का साथ दिया था। वे लेखक की ऐसी मित्र थीं, जिन्हें देखकर लेखक को हिम्मत मिला करती थीं। किताबों से लेखक का आत्मीय संबंध था। बीमारी के दिनों में जब डॉक्टर ने लेखक को बिना हिले–डुले बिस्तर पर लेटे रहने की हिदायत दीं, तो लेखक ने इनके मध्य रहने का निर्णय किया। इनके मध्य वह स्वयं को अकेला महसूस नहीं करता था। ऐसा लगता था मानो उसके हज़ारों प्राण इन पुस्तकों में समा गए हैं। ये सब उसे अकेलेपन का अहसास ही नहीं होने देते थे। उसे इनके मध्य असीम संतुष्टि मिलती थी। भरा–भरा होने से लेखक का तात्पर्य पुस्तकें के साथ से है, जो उसे अकेला नहीं होने देती थीं। लेखक को ऐसा महसूस होता था जैसे उसके प्राण भी इन पुस्तकों में ऐसे बसे हैं जैसे राजा के प्राण तोते में बसे थे।